'हिंदुओं से भेद अल्पसंख्यकों को मिलने वाला पैसा'

धनंजय महापात्रा, नई दिल्ली
नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) सरकार ने पिछले बजट में 4,700 करोड़ रुपये अल्पसंख्यकों की कल्याणकारी योजनाओं के लिए दिए थे। अब इसे हिंदुओं के साथ भेदभाव बताते हुए सुप्रीम कोर्ट () में चुनौती दी गई है। यूपी के 5 लोगों ने यह याचिका दाखिल की है। केंद्र सरकार 4 सप्ताह में इस याचिका पर जारी नोटिस का जवाब देगी।

सरकार बोली, बड़ी बेंच को ट्रांसफर हो मामला
इस बीच, केंद्र सरकार ने याचिका पर शीर्ष अदालत में कहा कि इसे बड़ी बेंच को ट्रांसफर कर दिया जाना चाहिए क्योंकि याचिका में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ऐक्ट, 1992 तथा संवैधानिक नियमों को भी चुनौती दी गई है। अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि इस मामले को 5 सदस्यीय संवैधानिक बेंच को भेजा जाना चाहिए। तब कोर्ट ने कहा कि वह इसे तीन सदस्यीय बेंच के पास भेजेगी, जहां से इसे और बड़े बेंच के पास भेजा जा सकता है। वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार 4 सप्ताह में इस नोटिस का जवाब देगी।

यूपी के 5 लोगों ने दाखिल की है याचिका
यूपी के 5 लोगों ने शीर्ष अदालत में यह याचिका दाखिल की है। याचिकाकर्ताओं के वकील विष्णु शंकर जैन ने अपनी दलील में कहा, ‘सरकार और संसद अल्पसंख्यकवाद को बढ़ावा नहीं दे सकते हैं और लाभकारी योजनाओं केवल उनके लिए जारी नहीं कर सकते हैं।’

याचिका में सरकार के फैसले को बताया गया है भेदभाव वाला
याचिकाकर्ताओं के वकील ने कोर्ट में कहा कि सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों के लिए स्कॉलरशिप, वक्फ तथा वक्फ की संपत्तियों को अनुचित लाभ जैसी योजनाएं विभेदकारी हैं। उन्होंने दलील दी कि हिंदु समुदाय के मठों, ट्रस्टों और अखाड़ों के लिए ऐसी योजनाएं नहीं हैं, जो धर्मनिरपेक्षता की धारणा के खिलाफ है और समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

‘सरकार का आदेश असंवैधानिक’
याचिका में कहा गया है कि नोटिफाई किए गए अल्पसंख्यक समुदायों में कोई भी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा नहीं है। याचिका में आगे कहा गया है कि इसलिए सरकार और संसद का यह आदेश असंवैधानिक है।

याचिका में दिए गए हैं कई तर्क
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ऐक्ट के तहत आने वाली कल्याणकारी योजनाओं में 14 स्कीम शामिल हैं। इनमें से ज्यादातर स्कीम मुसलमानों के लिए हैं। स्कीम का हवाला देते हुए याचिकाकर्ताओं ने कहा कि इस लाभकारी योजनाओं का लाभ एक खास समुदाय को मिल रहा है जबकि ऐसी ही स्थिति से गुजर रहे दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों को इन लाभों से वंचित रहना पड़ रहा है। याचिका में कहा गया है कि कोई राज्य अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समुदाय में भेदभाव नहीं कर सकता है। यह कोई ऐसे कानून नहीं बना सकते हैं, जो धार्मिक अल्पसंख्यकों को एक अलग वर्ग बताता हो। केवल संविधान के आर्टिकल 30 के तहत ही ऐसे कानून बन सकते हैं।

Source: National

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