पत्थलगड़ी: झारखंड में खूनी संघर्ष का डर, अलर्ट

रांचीझारखंड के पश्चिमी सिंहभूम के गुदड़ी प्रखंड के बुरुगुलिकेला में समर्थकों द्वारा सात पत्थलगड़ी विरोधियों की सामूहिक हत्या की घटना के बाद राज्य के कई इलाकों में दहशत है। पत्थलगड़ी से उपजे विवाद के बाद इस घटना को लेकर खूनी संघर्ष को लेकर अनचाहा डर हर किसी को सता रहा है। खूंटी क्षेत्र में जहां इस आंदोलन की शुरुआत हुई, वहां लोग अब इसकी वर्षगांठ मनाने की तैयारी कर रहे हैं। ऐसे में आशंका है कि आदिवासी बहुल यह इलाका एक बार फिर से अशांत और हिंसक रास्ते पर भटक सकता है।

झारखंड में को लेकर पुलिस और ग्रामीणों के बीच लंबा संघर्ष हुआ था, जिसमें कुछ लोगों की जानें भी गई थीं। पत्थलगड़ी आंदोलन की शुरुआत वाले खूंटी क्षेत्र के लोगों की इस मुद्दे पर अलग-अलग राय है। झारखंड के सामाजिक कार्यकर्ता और झारखंड नरेगा वॉच के संयोजक जेम्स हेरेंज ने कहा, ‘सरकार ने न तब संवेदनशीलता को समझा था और न ही अब वह इसकी गंभीरता को समझ रही है। शांतिप्रिय आदिवासी बहुल यह इलाका एक बार फिर से अशांत है। सरकार को पक्ष और विपक्ष को समझाने की जरूरत है।’

सरकार के खिलाफ आदिवासियों में गुस्सा
वह बताते हैं, ‘पत्थलगड़ी कोई नई प्रथा नहीं है। पत्थलगड़ी उन पत्थर के स्मारकों को कहा जाता है, जिसकी शुरुआत काफी पुरानी है। आज भी यह आदिवासी समाज में प्रचलित है। आदिवासी समाज में सरकार को लेकर डर और गुस्सा था। उनके बीच यह चर्चा थी कि सरकार जंगल और जमीन का अधिकार पूंजीपतियों को सौंपने जा रही है। पिछली सरकार ने कई नीतियां बनाई, जिससे आदिवासियों में यह डर पनपा कि खनन और औद्योगिकीकरण के नाम पर उन्हें उजाड़ा जाएगा।’

पढ़ें-

बुंडु और तमाड़ में तनाव, पुलिस भी सतर्क
अब चाईबासा की घटना के बाद खूंटी समेत रांची जिले के बुंडु और तमाड़ में दहशत और तनाव का माहौल है। इन इलाकों में खूनी संघर्ष की आंशका बनी हुई है। सूत्रों का कहना है कि खूंटी जिले के अड़की इलाके में नक्सलियों ने भी पत्थलगड़ी का समर्थन किया था। हालांकि, पुलिस इस घटना के बाद खूंटी में पैनी नजर रखे हुए है। पुलिस ने प्रत्येक सूचना तंत्र को इस पर नजर रखने का निर्देश दिया है। खूंटी के पुलिस अधीक्षक आशुतोष शेखर ने दो दिन पूर्व जिले के सभी थाना प्रभारियों और अधिकारियों से इस मामले को लेकर चर्चा की थी।

क्या है पत्थलगड़ी आंदोलन?
बता दें कि 25 जून, 2018 को पत्थलगड़ी समर्थकों और पुलिस के बीच खूंटी के घाघरा गांव में झड़प हुई थी। उस समय से ही यह आंशका जताई जा रही थी कि पत्थलगड़ी आंदोलन की आग पूर्णत: बुझी नहीं है। इसके बाद पश्चिमी सिंहभूम के गुदड़ी प्रखंड की इस घटना ने इस आंशका को सच साबित कर दिया। पत्थलगड़ी आंदोलन 2017-18 में तब शुरू हुआ था, जब बड़े-बड़े पत्थर गांव के बाहर शिलापट्ट की तरह लगा दिए गए थे। इस आंदोलन के तहत आदिवासियों ने बड़े-बड़े पत्थरों पर संविधान की पांचवीं अनुसूची में आदिवासियों के लिए प्रदान किए गए अधिकारों को लिखकर उन्हें जगह-जगह जमीन पर लगा दिया।

यह आंदोलन काफी हिंसक भी हुआ। इस दौरान पुलिस और आदिवासियों के बीच जमकर संघर्ष हुआ था। यह आंदोलन अब भले ही शांत पड़ गया है, लेकिन ग्रामीण उस समय पुलिस द्वारा हुए अत्याचार को नहीं भूले हैं। खूंटी पुलिस ने तब पत्थलगड़ी आंदोलन से जुड़े कुल 19 मामले दर्ज किए थे, जिनमें 172 लोगों को आरोपी बनाया गया था। हाल ही में हेमंत सोरेने के मुख्यमंत्री बनने के बाद पत्थलगड़ी से जुडे़ सभी मामले वापस लेने का सरकार ने निर्णय लिया।

Source: National

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *