विश्व दलहन दिवस पर बांदा में 'अरहर सम्मेलन'

संदीप बुन्देला, नई दिल्ली
दाल उत्पादन के जरिए भी किसानों की आय डबल की जा सकती है। आगामी 10 फरवरी को विश्व दलहन दिवस को देखते हुए यह लक्ष्य देखा है बुंदेलखंड के जिला प्रशासन ने। इस मकसद को पूरा करने के लिए जिले के ऐतिहासिक स्थल कालिंजर में ‘अरहर सम्मेलन’ होने जा रहा है। जहां दिल्ली के पूसा समेत देशभर से नामी कृषि विशेषज्ञों और दलहनी-तिलहनी फसलें उगाने के लिए पद्मश्री से सम्मानित हो चुके किसानों और जानकारों को बुलाया गया है। जो दलहन-तिलहन की फसलें उगाने को मशहूर इस बांदा जिले के किसानों को अपना उत्पादन बढ़ाने की नवीनतम तकनीक, उन्नत बीज, बुआई, फसलों के रखरखाव, कटाई आदि की वैज्ञानिक जानकारी देंगे।

विश्व दलहन दिवस पर बुंदेलखंड समेत देशभर में हो रहे इन कार्यक्रमों पर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि आज दालों का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता भारत है। साल 2014 में 5 मिलियन टन दालों का आयात किया गया था। मोदी सरकार ने दलहनी फसलों को बढ़ावा देने के लिए अलग से खाद्य सुरक्षा मिशन शुरू किया और यही वजह है कि आज हम दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भर हो चले हैं। कृषि मंत्री ने कहा कि अरहर को छोड़ अन्य दलहनी फसलें कम अवधि में तैयार होती हैं, इसलिए दालों की खेती के जरिए किसान अतिरिक्त आमदनी ले सकते हैं। बुंदेलखंड जैसे उर्वरता के नजरिये से कमजोर खेतों में दलहनी फसलें मिट्टी में फिर से उपजाऊपन बढ़ाती हैं। शाकाहारी खान-पान में प्रोटीन का सबसे प्रमुख स्रोत दालें हैं। लेकिन हमारे भोजन में कार्बोहाइड्रेट की प्रचुरता वाले गेहूं और चावल का ज्यादा योगदान होता है। विश्व दलहन दिवस पर दालों के इस्तेमाल को बढ़ावा देकर हम खाद्य सुरक्षा के साथ पोषण सुरक्षा का भी संदेश दे रहे हैं।

वहीं, अरहर सम्मेलन की जानकारी देते हुए बांदा के डीएम हीरा लाल ने कहा कि इसका मकसद बुंदेलखंड की प्रमुख फसलों – अरहर, चना, मसूर, सरसों की ब्रैंडिंग करना और 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के प्रधानमंत्री के दिए लक्ष्य की ओर बढ़ना है। बुंदेलखंड में सिंचाई की कमी को देखते हुए किसान फर्टिलाइजर का प्रयोग न के बराबर करते हैं। वहां ज्यादातर गोबर की (जैविक) खादों का इस्तेमाल होता है। इसलिए बांदा की दलहनी और तिलहनी फसलें ऑर्गेनिक भी हैं, जिनका स्वाद रासायनिक खादों से उगाई गई फसलों से बेहतर है। उन्होंने कहा कि प्रदेश की योगी सरकार और निजी क्षेत्र की कंपनियों के बीच करार से बांदा के किसान भी सीधे अपनी फसलें आई टी सी, बिग बाजार, वॉलमार्ट इंडिया, स्पेंसर, ऑर्गेनिक इंडिया जैसे बड़े कारोबारी घरानों को बेच सकेंगे। इसके लिए इन कारोबारी घरानों के प्रतिनिधियों को भी आमंत्रित किया गया है। इस तरह किसानों की मेहनत का सीधा लाभ किसान को मिलेगा और उसकी आमदनी भी बढ़ेगी।

-26.30 Lakh टन है देश में इस साल दलहन उत्पादन का लक्ष्य

-10 फीसदी कमी के आसार हैं इस बार दालों के उत्पादन में, 26.30 Lakh टन का लक्ष्य रखा था, लेकिन अनियमित बारिश से दलहनी फसलें कम हुईं

-6.5 फीसदी रहेगी महंगाई जनवरी-मार्च 2020 तिमाही में, आरबीआई के इस अनुमान के पीछे दालों की महंगाई का बड़ा हाथ है

-जैविक खेती के लिए मशहूर बांदा में 35.39% क्षेत्रफल में अरहर, 15% में चना, 10% में मसूर और करीब 1% में सरसों की खेती होती है

-18 ग्राम प्रोटीन होता है एक कप दाल में, घुलनशील फाइबर, मिनरल्स, विटामिन और एंटी-ऑक्सीडेंट से भरपूर दालें खाने को संपूर्ण बनाती हैं।

Source: National

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