एक दस्तखत की क्या अहमियत होती है, इसके बारे में के दोषियों से बेहतर भला कौन समझ सकता है। पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या में दोषी 7 लोगों को उम्रकैद काटनी होगी या फिर वे जेल से आजाद होंगे यह इसी एक दस्तखत पर निर्भर करेगा। यह सिग्नेचर तमिलनाडु के राज्यपाल को करना है। दरअसल, केंद्र सरकार ने शुक्रवार को मद्रास हाई कोर्ट को बताया कि तमिलनाडु के राज्यपाल के पास संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के तहत राजीव गांधी हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा काट रहे पेरारिवलन की लंबित दया याचिका पर फैसला लेने का विवेकाधिकार है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा कि आजीवन कारावास की सजा काट रहे सात दोषियों में से चार, नलिनी, संथन, मुरुगन और अरिवू ने अनुच्छेद 161 (कुछ मामलों में राज्यपाल द्वारा सजा माफ करने, रोक लगाने, कम करने या बदलने की शक्ति) के तहत राज्यपाल के समक्ष दया याचिका दायर की है। जवाब में कहा गया है कि राज्यपाल ने नलिनी के मृत्युदंड को आजीवन कारावास में परिवर्तित कर दिया था जबकि तीन अन्य की याचिका को खारिज कर दिया था।
…और इसे उम्रकैद में बदल दिया गया
साथ ही यह भी कहा कि शेष तीनों ने अपनी याचिका खारिज करने के फैसले को मद्रास हाई कोर्ट में चुनौती दी थी, बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। शीर्ष अदालत ने 18 फरवरी 2014 को तीनों की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था।
बम विस्फोट में हो गई थी मौत
गौरतलब है कि 21 मई, 1991 को श्रीपेरंबदुर में एक मानव बम विस्फोट में राजीव गांधी की मौत हुई थी और इस मामले के दोषी पेरारिवेलन, मुरुगन, नलिनी, शांतन, रविचंद्रन, जयकुमार और रॉबर्ट प्यास करीब तीन दशक से जेल में हैं। सितंबर 2018 में तमिलनाडु सरकार ने एक प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित को भेजा था, जिसके मुताबिक मामले में जेल में बंद दोषियों को रिहा करने की अनुमति मांगी गई थी।
पढ़ें:
Source: National