दिल्‍ली में दलितोंं के दिलों में नहीं मिली जगह, यूपी बीएसपी परेशान

शादाब रिजवी, मेरठ
दिल्ली विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को दलितों के दिल में जगह न मिलने से यूपी के बसपाई बेचैन हैं। दरअसल, यूपी में भी पार्टी कई चुनावों से कोई करिश्मा नहीं दिखा सकी है। दिल्ली में 2015 के चुनाव में मिले करीब 1.3 प्रतिशत वोट इस बार घटकर .70 प्रतिशत से कम रह गए हैं। दिल्ली में उसके ज्यादातर उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई, यहां तक कि रिजर्व सीटों पर भी हाथी नहीं चिंघाड़ सका।

ने 2020 के चुनाव में दिल्ली की सभी 70 विधानसभा सीटों पर अपने कैंडिडेट उतारे थे। हालांकि सियासत के जानकार शुरू से ही कह रहे थे कि मौजूदा हालात में बीएसपी कोई करिश्मा कर पाएगी, इसमें संदेह है। चुनाव आप बनाम बीजेपी होगा, मंगलवार को आए रिजल्ट से यह सच भी साबित हुआ।

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बीएसपी का खाता खुलना तो दूर उसके ज्यादातर कैंडिडेट जमानत तक नहीं बचा सके। दिल्ली में इस बुरी हार का सीधा असर बसपाई यूपी में देख रहे हैं। बीएसपी से जुड़े नेता दिल्ली की हार के असर का अंदाजा लगाकर बेचैन हैं। पार्टी के एक मंडल कोऑर्डिनेटर का कहना है, ‘दिल्ली के रिजल्ट का सीधा असर वेस्ट यूपी पर दिखेगा। यूपी में पहले से ही लगातार पार्टी का ग्राफ गिर रहा है, अब और गिरने के खतरे से इनकार नहीं किया जा सकता। इस पदाधिकारी के मुताबिक चिंता यह है कि पार्टी का दलित बेस भी छिटक रहा है, दिल्ली की 12 रिजर्व विधानसभा सीटों में से एक पर भी हम मजबूती से नहीं लड़ सके।’

बीएसपी की चिंता यूं ही नहीं
बीएसपी के वेस्ट यूपी के एक जोन स्तरीय पदाधिकारी के मुताबिक यूपी में 2012 में सत्ता से बेदखल होने के बाद पार्टी 2014 के लोकसभा चुनाव में एक भी सीट हासिल नहीं कर सकी। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी बुरी हार हुई, सिर्फ 19 विधायक जीते थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में लोकसभा की 10 सीटें जीती जरूर लेकिन वह समाजवादी पार्टी (एसपी) के सहयोग से संभव हुआ। अकेले लड़ने पर विधानसभा के उपचुनाव में बुरी गत हुई। एसपी से गठबंधन तोड़ने और फिलहाल सीएए के मुद्दे पर आक्रामक रुख नहीं अपनाने से मुस्लिम वर्ग में नाराजगी साफ दिख रही है। दलितों का युवा वर्ग भी खफा सा है। भीम आर्मी के चंद्रशेखर का क्रेज युवाओं में दिखने लगा है। यह पार्टी के लिए चुनौती और जोखिम भरा साबित होने के खतरे से कम नहीं है। वैसे ही वेस्ट यूपी में पार्टी के गिनती के जनप्रतिनिधि हैं।

1989 में दिल्ली में दी थी दस्तक
बीएसपी के एक पूर्व जोन कोऑर्डिनेटर का कहना है कि 1989 में बीएसपी दिल्ली में पहली बार चुनाव मैदान में उतरी थी। दिल्ली में आम आदमी पार्टी के आने से पहले बीएसपी दिल्ली के चुनावों में खास हैसियत रखती थी। बीएसपी ने दिल्ली में कभी लोकसभा की कोई सीट नहीं जीती हालांकि, 2008 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में दो सीट पर जरूर जीती थी। छह सीटों पर वह 14.05 प्रतिशत वोट हासिल करने के साथ दूसरे स्थान पर रही थी। इसी प्रकार बीएसपी ने दिल्ली के नगर निगम चुनावों में 2007 में 17 सीटें और 2012 में 15 सीटें जीतीं। दिल्ली में लगभग 15 प्रतिशत दलित मतदाता हैं। इस बीएसपी नेता के मुताबिक बीएसपी के संस्थापक काशीराम ने 1989 और 1991 में पूर्वी दिल्ली संसदीय क्षेत्र से दो बार चुनाव लड़ा है। हालांकि, दोनों बार वह हारे।

Source: International

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