दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे के लिए पिछले नौ महीनों में चौथा बड़ा झटका लेकर आए हैं। भगवा पार्टी को पहले ही हरियाणा और महाराष्ट्र से दो झटके मिल चुके हैं। हरियाणा में बहुमत हासिल नहीं कर पाने के बाद बीजेपी ने जेजेपी के सहारे किसी तरह अपनी नैया पार लगाई थी। वहीं, महाराष्ट्र में उसके नेतृत्व वाले गठबंधन ने चुनावी बाजी तो मार ली, लेकिन आपसी साझेदारी बिगड़ने से सत्ता हाथ से निकल गई। उसकी सहयोगी पार्टी रही शिव सेना ने गठबंधन से नाता तोड़कर विरोधी दलों के साथ मिलकर सरकार बना ली।
दिसंबर में बीजेपी के हाथ से झारखंड की कमान भी छिन गई। उसके दो महीने के अंदर पार्टी को दिल्ली में फिर से हार का सामना करना पड़ा है। चुनाव प्रचार जोर-शोर से करने के बावजूद ऐसा हुआ। बीजेपी का कैंपेन हिंदू राष्ट्रवाद पर केंद्रित था। उसने जम्मू और कश्मीर से हटाए गए आर्टिकल 370 और नागरिकता कानून जैसे मुद्दों के जरिए दिल्लीवासियों को रिझाने की कोशिश की थी।
अब बिहार की तैयारी
एक तरफ झारखंड में बीजेपी रीजनल नेता हेमंत सोरेन की ताकत का अंदाजा लगाने में चूकी थी। दूसरी ओर दिल्ली में आम आदमी पार्टी प्रमुख और दिल्ली मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ उसके हथकंडे काम नहीं आए। हालांकि, उसके वोट शेयर में सुधार हुआ है। 2015 के 32.3 पर्सेंट से बढ़कर यह इस बार 38.43 पर्सेंट रहा। लेकिन आम चुनाव के 56.58 पर्सेंट शेयर से यह काफी कम है। नतीजों से संकेत मिलता है कि बीजेपी को आगामी दो अहम विधानसभा चुनावों में रणनीति बदलने की जरूरत पड़ सकती है। बिहार में नवंबर और पश्चिम बंगाल में अगले साल की शुरुआत में चुनाव होंगे।
दिल्ली में आप ने खेला ‘लोकल कार्ड’
आप ने अपने कैंपेन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधने के बजाय स्थानीय मुद्दों पर जोर दिया था। उसे इसका फायदा मिला है। बीजेपी ने भी इस चुनाव को मोदी बनाम केजरीवाल का रूप नहीं दिया था। प्रधानमंत्री मोदी ने राजधानी में केवल दो रैलियां की थीं। हालांकि, भगवा पार्टी अन्य दिग्गज नेताओं ने बढ़चढ़कर प्रचार किया था। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने कई रैलियां की थीं। उन्होंने पिछले महीने लोगों के छोटे-छोटे समूहों के साथ बातचीत भी की थी।
Source: National