बता दें कि कोर्ट ने भगुतान में देरी पर टेलिकॉम कंपनियों को फटकार लगाई और कंपनियों के निदेशकों को नोटिस जारी कर पूछा कि भुगतान के आदेश का पालन नहीं किए जाने के कारण उन पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की जाए?
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जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एस, अब्दुल नजीर और जस्टिस एम. आर. शाह की पीठ ने सुनवाई करते हुए कई तल्ख टिप्पणी की। जस्टिस मिश्रा ने कहा, ‘देश में कोई कानून नही बचा है। मैं इस देश मे इस तरह काम नही करना चाहता। मैं जिम्मेदारी से ये कह रहा हूं। क्या सुप्रीम कोर्ट का कोई वैल्यू नही है? ये मनी पावर का परिणाम है। ये इस देश में क्या हो राह है। ये कंपनियां एक पैसे नहीं दिए और आपका अधिकारी सुप्रीम कोर्ट का आदेश स्टे कर देता है।’
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट एजीआर बकाये का भुगतान करने के आदेश का अनुपालन नहीं करने वाले मामले की सुनवाई कर रहा था। पीठ ने कहा, ‘हमें नहीं मालूम कि कौन ये बेतुकी हरकतें कर रहा है, क्या देश में कोई कानून नहीं बचा है। बेहतर है कि इस देश में ना रहा जाए और देश छोड़ दिया जाए।’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक डेस्क अधिकारी अटॉर्नी जनरल और अन्य संवैधानिक प्राधिकरणों को पत्र लिखकर बता रहा है कि उन्हें दूरसंचार कंपनियों द्वारा बकाये के भुगतान पर जोर नहीं देना चाहिए। तल्ख टिप्पणी में न्यायालय ने कहा, ‘‘यदि एक डेस्क अधिकारी न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने की धृष्टता करता है तो फिर सुप्रीम कोर्ट को बंद कर दीजिए।’
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कोर्ट ने कहा, ‘हमने एजीआर मामले में समीक्षा याचिका खारिज कर दी, लेकिन इसके बाद भी एक भी पैसा जमा नहीं किया गया। देश में जिस तरह से चीजें हो रही हैं, इससे हमारी अंतरआत्मा हिल गई है।’ उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने एजीआर बकाये को लेकर सुनवाई करते हुए दूरसंचार कंपनियों तथा कुछ अन्य कंपनियों को दूरसंचार विभाग को 1.47 लाख करोड़ रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया था। इसके भुगतान की समयसीमा 23 जनवरी थी।
Source: National