इसके बाद अन्य कम्बाला धावक के बारे में भी खबर आई जो श्रीनिवास से भी तेज दौड़ने का दावा करते हैं। आइए जानते हैं कि
कम्बाला दौड़ होती क्या है।
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कर्नाटक में आयोजित होने वाली सालाना भैंसा दौड़ को कम्बाला कहा जाता है। परंपरागत रूप से, इसे स्थानीय तुलुवा जमींदारों और दक्षिण कर्नाटक और उडुपी के तटीय जिलों तथा केरल के कासरगोड, जिसे सामूहिक रूप से तुलु नाडु के रूप में जाना जाता है, की ओर से प्रायोजित किया जाता है। इसमें भैंसों को सजाया जाता है और तेज दौड़ने के लिए काफी तैयार किया जाता है।
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ट्रैक पर होता है कीचड़कंबाला का आयोजन दो समानांतर रेसिंग ट्रैक्स पर होता है। ट्रैक में पानी फैलाकर कीचड़ कर दिया जाता है। ये ट्रैक 120 से 160 मीटर लंबे होते हैं और 8 से 12 मीटर तक चौड़े होते हैं। दो भैंसों को बांधा जाता है और उन्हें प्लेयर्स (जॉकी) द्वारा हांका जाता है। भैंसे को लेकर पहले फिनिश लाइन तक पहुंचने वाला विजेता होता है। भैंसों को दौड़ाने के लिए रेसर उन्हें डंडे या रस्सी से पीटते भी हैं।
पहले जीतने पर मिलते थे नारियलइस खेल के विजेताओं को पहले नारियल दिए जाते थे, लेकिन अब गोल्ड मेडल और ट्रोफी के अलावा अन्य कीमती सामान आदि देकर सम्मानित किया जाता है।यह आयोजन कई दिनों तक चलते हैं और क्षेत्रीय स्तर पर ग्रैंड फिनाले का आयोजन होता है। इस फेस्टिवल की शुरुआत उद्घाटन समारोह के साथ होती है, जिसमें किसान अपने भैंसों के साथ जुटते हैं।
भगवान को खुश करने की भी मान्यताएक मान्यता के मुताबिक कर्नाटक के कृषक समुदाय के बीच 800 साल पहले इस खेल का आयोजन शुरू हुआ था। यह पर्व भगवान शिव के अवतार कहे जाने वाले भगवान मंजूनाथ को समर्पित माना जाता है। कहा जाता है कि इस खेल के जरिए अच्छी फसल के लिए भगवान को खुश किया जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार यह शाही परिवार का खेल था।
लव-कुश कम्बालाआधुनिक कंबाला दौड़ की शुरुआत 1969-70 में बाजागोली से हुई। इसे लव -कुश कंबाला नाम दिया गया था। 5 हजार से अधिक लोग सीधे तौर पर कंबाला दौड़ के आयोजन से जुड़े रहते हैं।
होते हैं कई अंपायरपिछले 700 साल से कर्नाटक के तटीय इलाकों में कीचड़ से सने ट्रैक पर होने वाली कंबाला दौड़ में कई अंपायर होते हैं। पूरे दौड़ में विडियो रेफरल की सुविधा रहती है। कई बार दौड़ के दौरान फ्लड लाइट्स का भी इस्तेमाल किया जाता है। आयोजक विजेता का फैसला करने के लिए लेजर बीम नेटवर्क का इस्तेमाल करते हैं। कंबाला का अयोजन धान की दूसरी फसल काटने के बाद किया जाता है।
- कम्बाला दौड़ क्या होती है?कर्नाटक में आयोजित होने वाली सालाना भैंसा दौड़ को कम्बाला कहा जाता है। परंपरागत रूप से, इसे स्थानीय तुलुवा जमींदारों और दक्षिण कर्नाटक के तटीय जिलों, उडुपी तथा केरल के कासरगोड, जिसे सामूहिक रूप से तुलु नाडु के रूप में जाना जाता है, की ओर से प्रायोजित किया जाता है।
- साल में कब आयोजित होती है कम्बाला दौड़?कंबाला आमतौर पर नवंबर में शुरू होती है और मार्च तक इसका खेल चलता है। कंबाला का आयोजन कंबाला समितियों (कंबाला असोसिएशन) के माध्यम से किया जाता है।
- कम्बाला दौड़ में कैसे होता है विजेता का फैसला?कंबाला का आयोजन दो समानांतर रेसिंग ट्रैक्स पर होता है। ट्रैक में पानी फैलाकर कीचड़ कर दिया जाता है। ये ट्रैक 120 से 160 मीटर लंबे होते हैं और 8 से 12 मीटर तक चौड़े होते हैं। दो भैंसों को बांधा जाता है और उन्हें प्लेयर्स (जॉकी) द्वारा हांका जाता है। भैंसे को लेकर पहले फिनिश लाइन तक पहुंचने वाला विजेता होता है।
- कम्बाला दौड़ में क्यों खड़ी रहती हैं ऐंबुलेंस?इस रेस के दौरान भी कई बार हादसे हो जाते हैं। कई बार भैंसे गिर जाते हैं या फिर किसान के ऊपर ही चढ़ जाते हैं, ऐसे में उनके साथ दौड़ रहे शख्स की जान जाने तक का खतरा रहता है। इन इवेंट्स के दौरान ऐंबुलेंस को हमेशा तैयार रखा जाता है।
- कम्बाला दौड़ में विजेता को क्या मिलता है?कम्बाला दौड़ के विजेताओं को गोल्ड मेडल और ट्रोफी के अलावा अन्य कीमती सामान आदि देकर सम्मानित किया जाता है। पहले इस खेल के विजेताओं को नारियल दिए जाते थे।
Source: Sports