कप्तान हमेशा हीरो नहीं होता, वह हीरो बनाता है: शास्त्री

अक्षय सवाई, मुंबई
करीब एक महीना पहले मुंबई में एक कार्यक्रम में मौजूद थे और वह यहां खेल के चंचल स्वभाव की बात कर रहे थे। उन्होंने इस मौके पर वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड से मिली हार को भी याद किया। शास्त्री ने उस हार को याद करते हुए कहा, ‘तब ड्रेसिंग रूम में दो घंटे तक इतना सन्नाटा था, जो कान फाड़ रहा था। इसके बाद हम स्टेडियम छोड़ रहे थे तब करीब 5000 लोग वहां बाहर खड़े थे और वे कह रहे थे ‘शाबाश लड़को, होता है (वेलडन गाइज, नेवर माइंड)।’ यही खेल की खूबसूरती होती है, यह आपको ऊपर लेकर जाता है तो नीचे भी लेकर आता है। आप हमेशा मीठा.. मीठा.. मीठा.. पसंद नहीं करते।’

अब टीम इंडिया फिर से न्यूजीलैंड के खिलाफ खेल रही है। यहां सिर्फ मीठा मीठा मीठा नहीं है। भारत ने टी20 सीरीज में मेजबान का सफाया किया तो वनडे सीरीज में उन्होंने हमारा सफाया कर हिसाब चुकता कर दिया। अभी टेस्ट सीरीज जारी है और इसका रिजल्ट इस टूर की सफलता और असफलता को साबित करेगा।

दूसरों को राह दिखाती है लीडरशिप
इस दौरान कोच रवि शास्त्री ने नेतृत्व की विशेषताओं पर भी अपने विचार साझा किए। लीडरशिप की परिभाषा बताते हुए टीम इंडिया और मुंबई के इस पूर्व कप्तान ने कहा, ‘लीडरशिप आपसे मांग करती है कि आप दूसरों को राह दिखाएं। आप (बतौर) अगले 12 महीनों में खुद को कहां देखना चाहते हैं। इससे संभवत: आपकी मनोदशा में बदलाव आता है। इससे कोई लड़का यह नहीं कहता कि मैं यह नहीं करना चाहता।’ यह टीम प्रबंधन का निर्णय होता है। आप खुशी-खुशी इसके करते हैं। बात जब फिटनेस पर आती है, तब कई लोग अपने चेहरे खींच लेते हैं लेकिन जब वह परिणाम देखते हैं, और फिटनेस के प्रति विराट का समर्पण देखते हैं, तब बाकी भी उसे खुशी-खुशी अपनाते हैं।

खिलाड़ियों में आपसी टकराव, परवाह नहीं करते शास्त्री
अगर टीम के दो सीनियर खिलाड़ियों में अहम का टकराव होता है, तो शास्त्री को इसकी भी परवाह नहीं होती। यह ज्यादा पुरानी बात नहीं है। हालांकि उन्होंने यहां किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन सभी को पता है कि वह यहां पर किनकी बात कर रहे थे।

प्लेयर्स के अहं से टीम को होता है फायदा
सीनियर खिलाड़ियों की इगो क्लैश (अहं के टकराव) पर शास्त्री ने कहा, ‘यह अच्छा ही होता है क्योंकि इससे दोनों का बेस्ट बाहर आता है। मैं यह सब मैदान के बाहर से देख रहा था। अगर इससे आग ज्यादा लगती तो मैं वहां नियंत्रण के लिए था। लेकिन मैं चाहता था कि कुछ समय के लिए इसे चलने दिया जाए। क्योंकि यहां प्रतिस्पर्धा यह थी कि अगर वह 200 कर रहा, तो मैं 220 करूंगा। इससे किसको फायदा होगा? निश्चिततौर पर टीम को। लेकिन यह नियंत्रण से बाहर नहीं होना चाहिए और ऐसा हुआ भी नहीं। क्योंकि आप जानते हैं कि ऐसे विचारों और व्यवहार से आप टीम का मनोबल तोड़ते हैं। यह खेल आपको एक चीज और सिखाता है। वह यह- एक कप्तान हीरो नहीं होता। वह हीरो बनाता है।’

कप्तानी संभालने के बाद कोहली के व्यवहार में आया शानदार बदलाव
जब शास्त्री से यह पूछा गया कि क्या ड्रेसिंग रूम में कोहली उग्र हो जाते हैं? इसके जवाब में शास्त्री ने कहा, ‘बिल्कुल यह किसी के भी स्वभाव में होता है। लेकिन बीते कुछ सालों में उन्होंने अपने व्यवहार को शानदार ढंग से व्यवस्थित किया है- जिस ढंग से उन्होंने कप्तानी, मीडिया, सफलता और असफलता को संभाला है। मैं उनमें आई शानदार परिपक्वता को देखता हूं।’

मेरी कोहली की सोच एक- कोई तीन दे तो उसे दस दो
शास्त्री ने अपनी और विराट की जोड़ी पर कहा, ‘जब कोच और कप्तान एक जैसे विचार वाले हों तो इससे मदद मिलती है। हम दोनों आक्रामक हैं, जीतना चाहते हैं, विरोधी की आंखों में आंखें डालकर देखते हैं और अगर मेरी शब्दावली को टेस्ट किया जाए, तो हम निश्चिततौर पर पलटकर जवाब देंगे। जैसे हिंदी-पंजाबी में में कहते हैं न ‘जो भी। अगर तीन दिया तो दस वापस दे दो।’ विराट मुझे इमरान खान (पाकिस्तान के पूर्व कप्तान) की याद दिलाते हैं। खेल में जो जुनून वह लेकर आते हैं वह बेहतरीन है। वह विरोधी के चेहरे पर होते हैं। अगर वह यहां बैठे होते तब वह बिल्कुल सामान्य व्यक्ति की तरह यहां बैठे होते। लेकिन जब उन्हें सफेद ड्रेस पहनाकर बाउंड्री लाइन के पार मैदान में उतार दिया जाता है, तब वह पिटबुल की तरह हो जाते हैं।

Source: Sports

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