ताजमहल या तेजोमहालय? जानें, क्या और क्यों है विवाद

आगरा
कभी में आरती तो कभी कांवड़ लेकर जाने की कोशिश… अमेरिकी राष्ट्रपति से पहले एक बार फिर ताजमहल और तेजोमहालय को लेकर विवाद शुरू हो गया है। बीती महाशिवरात्रि कुछ हिंदूवादी लोगों ने गुपचुप तरीके से ताजमहल के पीछे महताब बाग पर ‘तेजोमहालय शिव’ का प्रतीकात्मक जलाभिषेक किया था। जलाभिषेक करने पहुंचे लोगों का कहना था कि भारत और अमेरिका के संबंध अच्छे रखने के लिए वह शिवजी की पूजा-आरती करने पहुंचे हैं। हालांकि एएसआई साफ तौर पर इस बात को कह चुका है, ताजमहल एक मकबरा ही है, फिर भी बीच-बीच में ‘तेजोमहालय’ को लेकर विवाद शुरू हो जाता है। हम आपको बता रहे हैं कि आखिर यह तेजोमहालय का विवाद है क्या…

दरअसल में 1989 में इंडियन नैशनल आर्मी (आईएनए) के प्रचार अधिकारी रह चुके और आजादी के बाद सूचना और प्रसारण मंत्रालय में काम करने वाले पुरुषोत्तम नागेश ओक ने अपनी एक किताब में यह दावा किया था कि ताजमहल वास्तव में एक प्रचीन शिव मंदिर तेजोमहालय था। उसे बाद में एक मकबरे में तब्दील कर दिया गया था। उन्होंने अपने इस दावे को साबित करने के लिए ताजमहल में दिखने वाले हिंदू प्रभाव और मुगल अभिलेखों में ताजमहल के निर्माण के बारे में कुछ भी नहीं लिखे जाने को आधार बनाया था। पीएन ओक ने अपनी किताब
The Taj Mahal Is A Temple Palace में सैकड़ों ऐसे प्रमाण देने की कोशिश की थी, जिनसे यह साबित हो सके कि वह इमारत एक मंदिर थी।

ओक ने दिए थे इस तरह के प्रमाण
ओक ने अपनी किताब में लिखा था कि ताजमहल में संगमरमर की जाली पर 108 कलश बने हैं, कलश भी हिंदू परंपरा का हिस्सा है और 108 अंक भी हिंदू परंपरा में शुभ माना जाता है। ओक का कहना था कि आगरा मूल रूप से जाटों की नगरी है। जाट भगवान शिव को तेजाजी के नाम से जानते हैं। The Illustrated Weekly of India के जाट विशेषांक (28 जून, 1971) के अनुसार जाटों के तेजा मंदिर हुआ करते थे, इसके अलावा अनेक शिवलिंगों में एक तेजलिंग भी होता है, जिसके जाट उपासक थे। इसके आधार पर उन्होंने दावा किया था कि ताजमहल भगवान तेजाजी का निवासस्थल तेजोमहालय था। इसके अलावा ओक ने शाहजहां की बेगम मुमताज की मौत से जुड़े कई दावों के साथ विभिन्न विदेशी मेहमानों के यात्रा वृत्तांतों को भी कोट किया था।

ताजमहल में पूजा के लिए डाली गई थी याचिका
अप्रैल 2015 में आगरा जिला अदालत में छह वकीलों ने एक याचिका दाखिल की थी। इस याचिका में कहा गया कि ताजमहल एक शिव मंदिर था और इसे तेजोमहालय के नाम से जाना जाता था। इस याचिका के जरिए हिंदुओं को परिसर के अंदर पूजा की इजाजत देने की मांग की गई थी। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार, केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय, गृह सचिव और एएसआई से जवाब तलब किया था। इसी के बाद संस्कृति मंत्रालय ने नवंबर 2015 के दौरान लोकसभा में साफ किया था कि ताजमहल की जगह पर मंदिर होने के कोई सबूत नहीं मिले हैं।

मंदिर नहीं, मकबरा है ताजमहल: ASI
आगरा जिला अदालत में डाली गई याचिका पर सुनवाई के दौरान 2017 में आर्कियॉलजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) ने एक हलफनामा पेश किया था। हलफनामे में कोर्ट ने कहा था, ‘ताजमहल एक इस्लामिक ढांचा है, जबकि अपील करने वाले दूसरे धर्म के हैं। स्मारक पर कोई भी धार्मिक गतिविधि पहले कभी नहीं हुई थी।’

ओक के दावों को खारिज करते रहे हैं इतिहासकार
पुरुषोत्तम नागेश ओक के दावों को लेकर इतिहासकारों का कहना है कि मुगल काल में ताजमहल को रौज़ा-ए-मुनव्वर कहा जाता था और मुगल स्थापत्य कला में हिंदू प्रभाव भी दिखाई देता था, इसलिए सिर्फ इस आधार पर ताजमहल को मंदिर नहीं कहा जा सकता क्योंकि वहां की बनावट पर हिंदू छाप दिखती है। वहीं दूसरी ओर हिंदू महासभा की महिला विंग की प्रदेश अध्यक्ष मीना देवी दिवाकर का कहना है कि सरकार को चाहिए कि वह कब्र की खुदाई कराए, इसके बाद सारा सच सामने आ जाएगा।

Source: International

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