सारिका बहलोरिया, ‘गुड़िया हमारी सभी पे भारी’ की गुड़िया
‘‘होली से जुड़ी बचपन की मेरी काफी सारी यादें हैं, जहां मैं होली से एक दिन पहले अपने दोस्तों के गैंग और कजिन्स के साथ इकट्ठा हुआ करती थी और अगले दिन के लिये पानी के बलून्स भरा करती थी। मेरे परिवार की महिलाएं, मेरी मां और मेरी चाचियां उस दिन के लिये स्वादिष्ट खाना तैयार करती थीं और घर देसी घी में तली जाने वाली गर्म जलेबियों के साथ, गुझिया के खुशबू से भर जाता था और सबको ठंडाई परोसी जाती थी। वो मेरे बचपन के बेहतरीन दिन थे। लेकिन आज के समय में पानी की किल्लत की वजह से मैं अपने फैन्स तथा दर्शकों से विनती करना चाहूंगी कि पानी का इस्तेमाल कम कर दें और जहरीले रंगों के साथ ना खेलें, क्योंकि ये त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं और उससे एलर्जी होती है। अंत में मैं सबको खुशियों भरी, मजेदार और खुशहाल होली की शुभकामनाएं देना चाहूंगी।’’
आशीष कादियान, ‘संतोषी मां सुनाये व्रत कथायें’ के इंद्रेश
‘‘गुझिया की महक और ठंडाई पीने की मस्ती, होली के ही पर्याय माने जाते हैं, यह त्यौहार के जोश को और बढ़ा देते हैं। इस त्यौहार से जुड़ी सबसे अच्छी यादें स्कूल के दिनों की है, जोकि अब पूरी तरह से बदल चुका है। मेरा मानना है कि इस त्यौहार से जुड़ी काफी सारी चीजें और हैं और पानी की बर्बादी किये बिना इसे उतने ही मजेदार तरीके से मनाया जा सकता है। ‘संतोषी मां सुनाये व्रत कथायें’ के सेट पर भी होली का एक छोटा-सा सेलिब्रेशन था। जहां सब एक-दूसरे के लिये मिठाई लेकर आये थे और एक-दूसरे के चेहरे पर आॅर्गेनिक कलर लगाया था। यह जानते हुए कि हम किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं तो वह काफी मजेदार था और इसलिये सबसे मेरी यही विनती है कि सोच-समझकर पानी का इस्तेमाल करें। आपको एक बेहतरीन तथा खुशहाल होली की शुभकामनाएं।’’
तन्वी डोगरा, ‘संतोषी मां सुनायें व्रत कथायें’ की स्वाति
‘‘बचपन में मैं चंडीगढ़ में अपने कजिन्स तथा परिवार के साथ होली मनाया करती थी। हमारा पूरा दिन एक-दूसरे को हर्बल कलर्स लगाकर बीतता था, जोकि मेरी दादी हल्दी, चुकंदर पावडर और ऐसी ही कई सारी चीजों को मिलाकर बनाया करती थीं। मेरी मां और मेरी चाचियां स्वादिष्ट समोसे, बटाटा वड़ा और गरमागरम जलेबी बनाया करती थीं, जिसे सारा परिवार एक साथ मिलकर खाता था। हम सब वाॅटर गन के साथ खेलते थे और मेरे अंकल ताजी ठंडाई तैयार करते थे उसका मजा लेते थे। मैं मुंबई आ गयी हूं, अब मैं अपने इमिडिएट फैमिली के साथ इसे मनाती हूं और बाहर ज्यादा निकलना पसंद नहीं करती। यह साल थोड़ा अलग था, क्योंकि इस साल मुझे ‘संतोषी मां सुनायें व्रत कथायें’ के सेट पर अपने को-वर्कर्स तथा एक्टर्स के सााथ होली खेलने का मौका मिला। इस होली मैं सारी महिलाओं से कहना चाहूंगी कि बाहर निकलने से पहले अपने चेहरे पर नारियल का तेल लगायें ताकि खराब रंगों के बुरे प्रभाव से बच सकें।’’
जितेन लालवानी, ‘कहत हनुमान जय श्रीराम’ के केशरी
‘‘रंगों के बिना जीवन का कोई मतलब नहीं है और मेरे लिये होली उत्साह का त्यौहार है और यह त्यौहार विभिन्न रंगों की ऊर्जा से प्रेरित वही उत्साह साथ लेकर आता है। मैं इस त्यौहार को अपने परिवार तथा बच्चों के साथ बड़ी धूमधाम से मनाता हूं, लेकिन अपने शो ‘कहत हनुमान जयश्रीराम’ के सभी कलाकारों तथा क्रू के सदस्यों के साथ भी इसे मनाया। एक टीम के तौर पर यह हमारी पहली होली थी और कुछेक एपिसोड की शूटिंग साथ करने के बाद, यह मजेदार अनुभव लेना बहुत ही अच्छा था। एक बार फिर होली के साथ, मैं चाहूंगा कि लोग पानी की बर्बादी रोकें और अपने मजे और मस्ती के लिये रास्ते के जानवरों को तंग ना करें। वाॅटर बलून्स से दुर्घटना हो सकती है और इसलिये इसे बंद करना चाहिये। मेरे सभी रीडर्स को सुरक्षित, ईको-फ्रेंडली और सूखी होली की शुभकामनाएं। खूब मजे करें लेकिन जिम्मेदार भी बनें।’’
शुभांगी अत्रे, ‘भाबीजी घर पर हैं’ की अंगूरी भाबी
‘‘होली कई सारी पुरानी यादें लेकर आती है, जब मैं इंदौर में यह त्यौहार अपने परिवारवालों के साथ मनाया करती थी। एक बहुत ही बड़े संयुक्त परिवार से आने की वजह से हम पहले ही खूब सारी पिचकारियां और रंग खरीद लेते थे, ताकि एक-दूसरे के ऊपर फेंक सकें। यह उन दिनों की बात है जब मैं जल्दी जाग जाया करती थी और मेरी मां मेरे बालों पर खूब सारा तेल लगा देती थीं। मुंबई में होली का सेलिब्रेशन काफी अलग तरह का होता है, जो मैं अपने होमटाऊन में मनाया करती थी। अब मैं इसे ज्यादातर अपनी बेटी और पति के साथ मनाती हूं, वो भी इस त्यौहार को लेकर उतने ही उत्साहित होते हैं। हर साल की तरह इस साल भी ‘भाबीजी घर पर हैं’ के सेट पर होली खेली जायेगी। मैं सबको खुशहाल और सुरक्षित होली की ढेर सारी शुभकामनाएं देती हूं।’’
सौम्या टंडन, ‘भाबीजी घर पर हैं’ की अनिता भाबी
‘‘होली की मेरी यादें बिना रंगों के हैं। छोटे शहर से ताल्लुक रखने के कारण, मुझे याद है कि मैं टेसू के फूल से होली खेला करती थी, जिससे पारंपरिक तौर पर रंग निकाले जाते थे। और मैं जिस शहर में रहती थी, वहां ये पेड़ काफी सारे थे। इसलिये, हम रंग निकालने के लिये उन फूलों को पानी में डाल दिया करते थे और फिर उन रंगों से खेला करते थे। उन रंगों से नुकसान नहीं होता था और वो नैचुरल होते थे। आज के समय में यह चीज पूरी तरह से खत्म हो चुकी है, क्योंकि हमारे शहरों में यह पेड़ अब नहीं रह गये हैं। इसके अलावा मुझे याद है कि मेरी मां होली के समय काफी सारी डिशेज बनाती थीं, जिनके बारे में मुंबई और दिल्ली में लोगों ने सुना भी नहीं होगा। हम लोग कांजी बनाया करते थे, जोकि राई का पानी होता था और हम हरे चने की बर्फी और गुझिया बनाते थे। हम लोग हर बार एक हफ्ते पहले ही ये डिशेज बना लिया करते थे। हम अपने सभी पड़ोसियों और रिश्तेदारों को होली की मुबारकबाद देने जाया करते थे। आज के समय की होली खेलने मंे मुझे मजा नहीं आता है, जोकि रंगों से खेली जाती है जिनमें केमिकल होता है और स्किन को बहुत ही नुकसान पहुंचता है। मैं ‘भाबीजी घर पर हैं’ के एक एपिसोड में ही होली खेलती नज़र आऊंगी, जिसकी शूटिंग में हम आॅर्गेनिक रंगों का इस्तेमाल कर रहे हैं।’’
रोहिताश गौड़, ‘भाबीजी घर हैं’ के मनमोहन तिवारी
‘‘होली कई सारी पुरानी यादें लेकर आती है, जहां कालका में मैं अपने परिवार के साथ यह त्यौहार मनाया करता था। उनमें से सबसे यादगार उस समय की होली है जब मैं नागपुर में रह रहा था और 10वीं क्लास में पढ़ रहा था। हम ब्लैक और सिल्वर आॅयल पेंट्स का इस्तेमाल करके होली खेला करते थे और एक-दूसरे को कीचड़ में डाल दिया करते थे। मेरा एक दोस्त था जोकि मुझ पर काला रंग लगा देता था, जिसेे उतरने में 15 दिन का समय लग जाता था। उस समय मैं उसे लगाने पर बहुत डर जाया करता था लेकिन कुल मिलाकर खूब मजा आता था। जहां खूब सारे बच्चे मिलकर धमाल किया करते थे। इस साल की होली घर पर अपनी बेटियों के साथ शांत तरीके से होगी। उन्हें इस त्यौहार को मनाने में काफी मजा आता है। ‘भाबजी घर पर हैं’ के सेट पर भी एक सीक्वेंस के लिये होली का एक छोटा-सा सेलिब्रेशन था, जहां हमने आॅर्गेनिक रंगों का इस्तेमाल किया है और मैं अपने दर्शकों से कहना चाहूंगा कि सूखी और सुरक्षित होलीे खेलें।’’
स्नेहा वाघ, ‘कहत हनुमान जयश्रीराम’ की अंजनी
‘‘मेरे लिये सबसे यादगार होली वो थी जब मैं इसे अपने परिवार के साथ मनाया करती थी। चाचा, चाचियों और भाई-बहनों के साथ संयुक्त परिवार में पले-बढ़े होने के कारण, हम रंगों से खेलने के लिये जल्दी जाग जाया करते थे। जब मैं छोटी थी, मुझे याद है मेरी दादी घर में सबके लिये गरमागरम पूरण पोली बनाती थीं। मुझे लगता है कि कोई भी त्यौहार मनाने का सबसे अच्छा तरीका है कि इसे परिवारवालों और दोस्तों के साथ मनाया जाये। त्यौहार हमें करीब लाते हैं और घर खुशियों और त्यौहार के रंग से रंग जाता है। पर्यावरण को लेकर मुझे बहुत चिंता रहती है और लोगों को सिर्फ सूखी और आॅर्गेनिक रंगों से होली खेलनी चाहिये। सुरक्षित रहें और हैप्पी होली!’’
कामना पाठक, ‘हप्पू की उलटन पलटन’ की राजेश
‘‘मेरे लिये होली का मतलब है गुझिया और ढेर सारी गुझिया। बचपन से ही मुझे यह स्वादिष्ट पकवान पसंद है और इसे बनाने में किसी और को नहीं बल्कि मेरी मां को महारत है। वह हर होली पर इसे बनाती हैं। मुझे और मेरे भाई को उसे चट करने में 5 सेकंड से ज्यादा का समय नहीं लगता। आमतौर पर मैं रंगों से नहीं खेलती हूं, क्योंकि बचपन से ही मुझे हल्की स्किन एलर्जी जैसी हो गयी है। उस समय मेरी मां हमें एक-दूसरे पर ताजी हल्दी लगाने के लिये दिया करती थीं और हल्दी का रंग ऐसा हो जाता था जैसे होली का रंग उतरने के बाद होता है। ‘हप्पू की उलटन पलटन’ की शूटिंग की वजह से मुझे अपने घर इंदौर जाने का मौका नहीं मिलता, लेकिन मैं शबाना आजमी के घर जरूर जाती हूं, क्योंकि यह घर से दूर घर जैसा है। इस होली अपने सभी दर्शकों से विनती करना चाहूंगी कि सुरक्षित होली खेलें और इस दौरान अपनी त्वचा तथा बालों का पूरा ध्यान रखें।’’