आधार लिंक कराने के नाम पर बड़ा फ्रॉड, 1000 से ज्यादा से ठगे 10 करोड़

नई दिल्ली-दिल्ली पुलिस ने ठगों के एक ऐसे गिरोह का पर्दाफाश किया है, जो 1000 से ज्यादा बुजुर्गों से 10 करोड़ से ज्यादा की ठगी कर चुका था। ये लोग बैंक अकाउंट या फोन नंबर को आधार कार्ड से लिंक करने के नाम पर बुजुर्गों को झांसा देकर उनसे बैंक खाते और अन्य दस्तावेजों की डीटेल्स पूछ लेते थे। उसके बाद गरीबों को पैसे देकर उनके डॉक्युमेंट्स पर पता बदलवा लेते थे और फिर इस पते पर बैंक अकाउंट खोलकर बुजुर्गों के खाते खाली कर देते थे। पुलिस ने तमाम बैंकों में इस तरह के करीब 1100 खातों का पता लगाया है।
इस गिरोह का जाल कई राज्यों में फैला था। डीसीपी एंटो अल्फोंस ने बताया कि गिरोह का सरगना झारखंड का अलीमुद्दीन अंसारी (27) है। पुलिस ने अलीमुद्दीन और आजमगढ़ के मनोज यादव को गिरफ्तार किया है। इनके पास से अलग-अलग बैंक अकाउंट के 81 डेबिट कार्ड, 104 चेकबुक, 130 पासबुक, 8 फोन, 31 सिम कार्ड, आईडी प्रूफ की फोटोकॉपी आदि बरामद किए हैं।

करोड़ों का ऑनलाइन फ्रॉड करने वाले अलीमुद्दीन अंसारी ने पूछताछ में बेहद चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। पुलिस को उसने बताया कि पहले वह गरीब लोगों को लालच देकर उनकी आईडी का उपयोग करते हुए बैंक अकाउंट खुलवाता था। इसके बाद अपने शिकार के पैसे को इन अकाउंट में ट्रांसफर करता था और पैसा आने के चंद मिनटों में ही उसे निकाल लेते था।

कैसे खुलते थे बैंकों में अकाउंट
डीसीपी एंटो अल्फोंस के अनुसार कई बैंक में 1100 खुलवाए गए हैं। इन अकाउंट्स की जांच की जा रही है। गिरोह के मनोज यादव का काम था कि वह पैसों का हिसाब रखे और गरीबों के नाम से बैंकों में अकाउंट खुलवाए। इसके लिए मनोज लेबर का काम करने वालों के संपर्क में रहता था और उन्हें हर अकाउंट के 2000 रुपये देता था। पैसे देने के बाद वह इन लोगों के आधार कार्ड और पैन कार्ड वगैरह की डीटेल लेता था।

इन लोगों के साथ जाकर आधार कार्ड में ऐड्रेस बदलवाता था और इस गलत पते पर अकाउंट खुलवाता था। इस दौरान मनोज खुद के नंबर ही बैंक में रजिस्टर्ड करवाता था, अकाउंट की पास बुक, डेबिट कार्ड, चेक बुक तक वह अपने पास रखता था। इन अकाउंट्स का इस्तेमाल शिकार के अकाउंट से पैसों को ट्रांसफर करने के लिए किया जाता था। एक बार जो अकाउंट इस्तेमाल होता था, वह फिर कुछ महीनों के लिए दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जाता था।

कैसे बनाते थे शिकार
मास्टर माइंड अलीमुद्दीन अंसारी और इसके लोग बुजुर्गों को फोन करते थे और खुद को टेलिकॉम कंपनी का कस्टमर केयर एग्जिक्युटिव या बैंक कर्मी बताते थे, जिसके बाद वह लोगों से बैंक अकाउंट या फोन नंबर को आधार कार्ड से लिंक करने के नाम पर उनके बैंक अकाउंट, डेबिट कार्ड और फोन नंबर और सिम नंबर की डीटेल लेते थे। जब इन्हें सभी डीटेल मिल जाती थी, तो यह लोगों को एक मैसेज भेजते थे और उसे 121 पर फारवर्ड करने को कहते थे। यह मैसेज सिम लॉक करने का होता था। इसके बाद लोगों का सिम डीएक्टिवेट हो जाता था और नया सिम एक्टिवेट हो जाता था। इसके बाद इस नए सिम के जरिए अलीमुद्दीन को सभी ओटीपी मिलते थे और वह इनसे ट्रांजैक्शन करता था। डीसीपी एंटो अल्फोंस ने बताया कि हम लोगों को बार बार जागरूक करते हैं कि अपने बैंक अकाउंट, सिम नंबर, डेबिट कार्ड वगैरह की जानकारी किसी से भी शेयर न करें।

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