मोदी-शी मीटिंग में भारत-चीन का क्या फायदा?

चेन्‍नै
पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा से मुलाकात के बाद चीन के राष्‍ट्रपति शी चिनफिंग अनौपचारिक बैठक के लिए भारत के दो दिवसीय दौरे पर आ रहे हैं। वुहान समिट के एक साल बाद अब तमिलनाडु के ऐतिहासिक शहर ममल्लापुरम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग दोनों देशों के बीच संबंधों को आगे बढ़ाने पर बातचीत करेंगे। विशेषज्ञों के मुताबिक इस बैठक से भारत जहां पाकिस्‍तान को संदेश देने की कोशिश करेगा वहीं चीन की कोशिश अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर की आग में झुलस रही अपनी अर्थव्‍यवस्‍था पर ‘गंगा-कावेरी का पानी’ डालने की होगी।

अंतरराष्‍ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ डॉक्‍टर रहीस सिंह ने
एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में कहा कि पाकिस्‍तान चीन को एक ऐसा सदाबहार दोस्‍त बताता रहा है जिसके साथ उसके संबंध शहद से भी मीठे और चट्टान जितने मजबूत हैं। जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 को निष्प्रभावी किए जाने के बाद से पाकिस्‍तान ने भारत को अलग-थलग करने जीतोड़ कोशिशें की हैं, लेकिन उसे चीन के अलावा किसी भी महत्वपूर्ण देश से समर्थन नहीं मिला है। हां, तुर्की और मलयेशिया जैसे मामूली महत्व के देशों ने भी पाक के सुर में सुर जरूर मिलाया है। अब चीनी राष्‍ट्रपति को अनौपचारिक बातचीत के लिए ममल्‍लापुरम बुलाकर भारत यह संदेश देना चाहता है कि आर्टिकल 370 हटाने के बाद भी अन्य देश तो दूर, पाकिस्तान के मित्र देश भी भारत से किसी तरह की दूरी बर्दाश्त नहीं कर सकते। डॉक्‍टर सिंह ने कहा, ‘भारत ने चीन के राष्‍ट्रपति को बुलाया है। यह अनौपचारिक बैठक अजेंडा और लक्ष्यव‍िहीन है। भारत ने जम्‍मू-कश्‍मीर से आर्टिकल 370 को हटाने के बाद यह कोशिश की कि दुनिया इसे भारत का आंतरिक मामला माने। भारत इसमें काफी हद तक सफल रहा है।’

चीन का रवैया ‘कभी प्रेम और कभी घृणा’ का
डॉक्‍टर सिंह ने कहा कि चीन का भारत के प्रति रवैया हमेशा से ही ‘कभी प्रेम और कभी घृणा’ का रहा है। चीन को जब भारत की जरूरत होती है तब वह बहुत प्‍यारी बातें करता है और जरूरत खत्‍म होते ही तीखे बयान देने लगता है। उन्‍होंने कहा कि इमरान खान और चिनफिंग के बीच मुलाकात के बाद भले ही चीन ने तीखे बयान दिए हों, लेकिन अमेरिकी ट्रेड वॉर की आंच से झुलस रहे चीन को भारत की सख्‍त जरूरत है। चीन की पूरी कोशिश होगी कि न केवल भारत के साथ उसका मौजूदा व्‍यापार बना रहे बल्कि अमेरिका के साथ व्यापार में आ रही गिरावट की भरपाई वह भारत से कर ले। इसी मकसद से शी चिनफिंग भारत आ रहे हैं।

उन्‍होंने कहा कि चीन भारत को ‘बेल्‍ट ऐंड रोड परियोजना’ से जोड़ना चाहता है, लेकिन इसे भारत ने ‘औपनिवेशिक’ मानसिकता से भरा कदम बताया है। यह शी चिनफिंग का ड्रीम प्रॉजेक्‍ट है और अरबों डॉलर की इस परियोजना के पूरा होने पर चीन पूरी तरह से बदल जाएगा। वह सॉफ्ट पावर के क्षेत्र में दुनिया की बड़ी शक्ति बन जाएगा। भारत चीन की चाइना-पाकिस्‍तान इकनॉमिक कॉरिडोर प्रॉजेक्ट (सीपेक) का भी विरोध कर रहा है जो पाकिस्‍तान अधिकृत कश्‍मीर से होकर जाती है।

‘वुहान के बाद चीन के स्‍वभाव में खास बदलाव नहीं’
उन्‍होंने कहा कि वुहान शिखर बैठक के बाद भारत-चीन संबंधों में काई खास बदलाव नहीं आया है। हालांकि दोनों देशों के बीच कोई बड़ा सैन्‍य गतिरोध नहीं हुआ है। चीन की सेना की घुसपैठ में भी तो कमी आई है, लेकिन वुहान के बाद चीन के स्‍वभाव में कोई खास बदलाव नहीं आया है। आतंकी अजहर मसूद पर चीन का रुख काफी समय बाद बदला। एफएटीएफ में चीन पाकिस्‍तान का समर्थन कर रहा है। इमरान खान कश्‍मीर के साथ एफटीएएफ की ग्रे लिस्‍ट से पाकिस्‍तान को बाहर कराने के लिए चीन से मदद मांगने गए थे। एफटीएएफ का अध्‍यक्ष अब चीन का होने जा रहा है। यही नहीं चीन पाकिस्‍तान की विदेशी मोर्चे पर मदद लगातार कर रहा है। डॉक्‍टर सिंह ने कहा कि वुहान से सिर्फ गतिरोध कम हुआ है, लेकिन पाकिस्‍तान को अलग-थलग करने की भारतीय कोशिश में चीन ने साथ नहीं दिया है, बल्कि उल्टे पाकिस्‍तान की ही मदद की है।

चिनफिंग-इमरान के मंसूबों पर भारत ने फेरा पानी
विदेशी मामलों के जानकार कमर आगा कहते हैं कि चीन के राष्‍ट्रपति जम्‍मू-कश्‍मीर के मुद्दे को पीएम मोदी के साथ बातचीत के दौरान उठाना चाहते थे और इसीलिए उन्‍होंने इमरान खान से मुलाकात की थी। हालांकि भारत के सख्‍त रुख के बाद उन्‍हें कश्‍मीर मुद्दे से पीछे हटना पड़ा है। आगा ने कहा कि इस बैठक के दौरान चीन और भारत में रक्षा और क्षेत्रीय मुद्दे, व्‍यापार, अफगानिस्‍तान को लेकर बातचीत होगी। बेल्‍ट ऐंड रोड इनिशटिव (बीआरआई) पर भी बातचीत हो सकती है।

आगा ने कहा कि डोकलाम विवाद के बाद चीन को यह समझा आ गई कि भारत के साथ संघर्ष ठीक नहीं है। भारत अमेरिका, ऑस्‍ट्रेलिया, जापान के साथ क्‍वॉड का सदस्‍य है। अगर यह सैन्‍य संगठन बनता है और भारत इसमें शामिल होता है तो चीन के लिए मुश्किल हो जाएगी। भारत ने अभी सैन्‍य गठजोड़ में शामिल होने से इनकार किया है। आगा ने कहा कि भारत और चीन के बीच करीब 100 अरब डॉलर का व्‍यापार होता है और यह चीन के फेवर में है। अब कई क्षेत्रों में भारत चीन के बाजार में प्रवेश कर रहा है। अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर से चीन का बहुत ज्‍यादा नुकसान हो रहा है और भारत भी इससे अछूता नहीं है। इस मुद्दे पर दोनों देश साथ आ सकते हैं।

Source: National

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