जजों की नियुक्ति में PM की हो अहम भूमिकाः रविशंकर

नई दिल्ली
केंद्रीय कानून मंत्री ने शुक्रवार को यहां भारतीय संविधान पर लिखी एक पुस्तक के विमोचन समारोह में कहा कि वह आश्वस्त कर देना चाहते हैं कि देश में कोई भी नया संविधान नहीं बनने वाला है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के चुनाव में प्रधानमंत्री की अहम भूमिका होती है, फिर न्यायाधीशों की नियुक्ति में प्रधानमंत्री की भमिका क्यों नहीं हो सकती।

रविशंकर प्रसाद ने यहां इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में बोलते हुए जजों की नियुक्ति वाली मौजूदा प्रणाली पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, ‘जब देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के चुनाव में सबसे अहम भूमिका प्रधानमंत्री की होती है। मुख्य चुनाव आयुक्त, सीएजी, सीवीसी जैसे संवैधानिक पदों के लिए नियुक्तियों में प्रधानमंत्री की भूमिका होती है, सभी मंत्री उनके अधीन काम करते हैं तो क्या वह एक ईमानदार जज नहीं नियुक्त कर सकते।’

रविशंकर ने कहा, ‘प्रधानमंत्री देश की सुरक्षा, संप्रभुता का इंचार्ज होता है। परमाणु बम तब तक नहीं चलेगा, जब तक वह बटन नहीं दबाएगा, क्या इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाने वाले प्रधानमंत्री से एक ईमानदार जज नियुक्त करने की अपेक्षा नहीं होनी चाहिए। मुझे के फैसले पर आपत्ति है।’ रविशंकर सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का जिक्र कर रहे थे, जिसमें सरकार की ओर से जजों की नियुक्ति के लिए कॉलीजियम की जगह सुझाए गए 6 सदस्यीय आयोग के गठन के फैसले को नकार दिया गया था।

प्रसाद ने कहा कि जिसे जनता चुनती है, उसे ही सरकार चलाने और कानून बनाने का हक होना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘देश के संविधान में कलीजियम प्रणाली का जिक्र नहीं है, मगर 1991 से यह व्यवस्था अमल में आई। 1991 से पूर्व जब जजों को चुनने में भारत सरकार की भूमिका होती थी, तब क्या एक से बढ़कर एक कृष्ण अय्यर, वेंकटरमण, जगमोहनलाल सिन्हा जैसे ईमानदार जज नहीं देश को मिले?’

पूर्व राज्यसभा सदस्य डॉ. महेश चंद्र शर्मा और राम बहादुर राय की लिखी पुस्तक ‘भारतीय संविधान-एक पुनरावलोकन’ का विमोचन करते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा कि ‘इस देश में अब तक सिर्फ चार प्रधानमंत्रियों को ही जनता ने चुना है। इनमें नेहरू, इंदिरा, अटल बिहारी और नरेंद्र मोदी हैं, बाकी सब कैसे चुने गए कुछ कहने की जरूरत नहीं है। राजीव गांधी को 400 सीटें मां की हत्या के कारण मिली थीं।’ उन्होंने कहा कि देश के लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका, प्रेस और स्वतंत्र सोच का होना बेहद जरूरी है।

Source: National

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