जागो कलमकारों जागो अपने कलम को गुंडों के आतंक ओर भय के आगे कमजोर मत होने दो.

अनिल सिंह भदौरिया की कलम से विशेष लेख पत्रकार साथी के साथ 

किरंदुल,सफेद कुर्ता सफेद पैजामा पहनकर एक तिरंगा नुमा गमछा गले मे और एक सफेद टोपी सिर पर लगाकर अपने आपको नेता बताने वाले नेता नहीं काग्रेस के छुट भैया कहलाने वालो नेताओ के चरण पादुकाओं को चटकारे मारने वाले चाटुकारिता के नाम पर दुम हिलाने वाले…स्वामी भक्ति का चोला ओढ़कर अपनी चाटूकारिता व राजनीति के नशे में इतने चूर हो गये की सरे राह कलमकारों को पुलिस के सामने चाटे मारते रहे..? ओर पुलिस मूकदर्शक बनी सब कुछ देखती रही..? कांकेर की सड़कों पर मुठी भर असामाजिक तत्वो के द्वारा गुड्डागर्दी के बल पर खोफ ओर आतंक का नजारा एक निर्भीक कलमकार पर दिखाने का प्रयास किया जाना..राजनीति का खोफदार चेहरा सड़को पर से गुजरने वालो ने जरूर देखा होगा..? जो राजनीति की आड़ में बेहद घटिया ओर निंदनीय कृत्य था..।शायद ये उनका निर्भीक कलम को भयभीत करने का प्रयास था..! कमल शुक्ला जी के साथ सड़को पर जो कायराना हमला हुवा, उन्हें बेइज्जत करने की कोशिश करने वालो को यह पता नही की कलम की ताकत को बाहुबली अपनी भुजाओं के बल से तोलने का दुरसाहस जो कर रहे है! उसका परिणाम क्या होगा.? इसका आभास शायद नहीं होगा.. कलम को आतंकित करने की कोशिश निश्चित रूप से उन्हें सलाखों के पीछे ले जाने से कोई नही बचा सकता..! पत्रकार के साथ सरेराह अमानवीय कृत्य महामूर्खता घटियापन ओर ओछी मानसिकता का प्रतीक था..! वो भूल जाये की कलमकार की कलम न आतंक से डरती है न किसी बाहुबली गुंडों से..!ओर न किसी भय के आगे झुकना ही जानती है..! कलम चलती है निष्पक्ष निर्भीक ओर दबंगाई से..! सत्ता का गुरुर इतना सर पर चढ़ गया की उसकी गर्मी में चंद राजनीति गुंडे कलमकार पर सरे आम हाथ छोड़ने का दुरसाहस करने लगे..?छतीसगढ़ की अपनी मर्यादा है उसे यूपी बिहार की तर्ज देने की कोशिश जरूर राजनीति गुंडों ने की है.! उन्हें इस बात का अहसास था की उन्हें ऐसा घिंनोने कृत्य करने के बाद राजनीति सरक्षण मिल जाएगा..? इसी दुरसाहस के साथ आकाओ के गुरुर में चंद असामाजिक तत्व सड़को पर आतंक मचाने का साहस कांकेर में सरेराह दिखाते रहे..स्थानीय पुलिस धृतराष्ट्र की तरह आंखों में पट्टी बांधे सारा नजारा देखती रही..ओर एक कलमकार पिटता रहा..? जंगलों में नक्सलियों की माद में दहाड़ मारने वाली कांकेर की पुलिस के हाथ इतने बोने ओर असहाय आखिर क्यो..? क्योकि सड़को पर सारे राह गुंडागर्दी करने वाले लौंग राजनीति रूप से प्रभावी थे इस लिए.? उन्हें गुंडागर्दी करने की छूट थी । यही मजबूरी थी ना पुलिस की..? इस नीदनीय कृत्य का
जबाब सम्पूर्ण प्रदेश के शहर गांव कस्बा में अनगिनत कलमकार अपनी एकता के साथ गुंडों पर कानूनी कार्यवाही तथा कलम की रक्षा के लिये संघर्ष का बिगुल फुकते हुवे सड़को पर उतरने में कोई कसर पीछे नही छोड़ेंगे..!ये कायराना हमला कमल शुक्ला जी पर नही बल्कि पत्रकार बिरादरी पर हुवा है..!जिसका पुर जोर विरोध पूरे प्रदेश में होगा..ओर जमकर होना भी चाहिए.. 15 वर्षो के लम्बे अंतराल के बाद प्रदेश में सत्ता काग्रेस के हाथों में आई.!
इसके लिये कड़ी मेहनत और कड़ा संघर्ष नेताओ को करना पड़ा! प्रदेश मे भय मुक्त सुशासन की परिकल्पना करते हुवे प्रदेश की जनता ने भूपेश बघेल के नेर्तत्व में सत्ता सौपी।आज उस परिवर्तन को गुंडे प्रवर्ति की मानसिकता के लॉंग अपने बदौलत समझकर पत्रकार पर अपने बाहुबली होने का धोंस जमा रहे है?? कांकेर की सड़कों पर एक पत्रकार सरे आम पीटता रहा और खाखी पर तमका लगाये जबाबदार मूकदर्शक बने देखते रहे..? लानत है कांकेर पुलिस को जो गूंगी बेहरी बनी सब देखती रही…प्रदेश सरकार एक ओर पत्रकारों के हितों में पत्रकार सुरक्षा कानून की बात करती है तो दूसरी ओर कुछ सत्ता के नशे में चूर छूट भैया नेता सड़को पर पत्रकार को जान से मारने को उतारू है।क्या यही सुरक्षा कानून है सरकार का.? शर्म तो इस बात की है की जनता की करने वाले सुरक्षा कर्मियों के सामने सब कुछ होता रहा..!!

जागो कलमकारों जागो अपनी कलम को गुंडों के आतंक ओर भय के आगे कमजोर मत होने
दो.. !

कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के छुट भैयानेताओ कि उल्टी गिनती शुरू हो गई .

आये हम सब अपने कलमकार साथी के साथ खड़े होकर असामाजिक तत्वो के सत्ता के गुरुर को तोड़ते हुवे.. आतंक भय अत्याचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करे..!

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