2012 में दुनिया भर को दहला देने वाली दिल्ली के के बाद जांच करने में जुटी टीम ने जिस तरह से केस की पड़ताल की वह बेहद अहम थी। निर्भया की रिपोर्ट्स के साथ-साथ केस के हर पहलू को जोड़ने वाली जांच टीम के लिए सभी आरोपियों के खिलाफ पुख्ता सबूत जुटाना एक चुनौती जैसा था। लेकिन तमाम मुश्किलों के बावजूद जिस तरह इस केस की जांच के बाद आरोपियों की सारी दलील ध्वस्त हुई, वह सभी के लिए नजीर बनी।
जांच अधिकारियों के अनुसार, निर्भया के शरीर पर दांत काटने के इतने निशान थे, मानो जानवरों ने नोंच डाला हो। इसे अहम सबूत बनाना था। क्राइम केस इनवेस्टिगेशन की 500 से अधिक वेबसाइट सर्च कीं। वहीं से फरेंसिक डेंटिस्ट्री का पता चला। दांतों के जरिए इंसान की पहचान करने की कला को फरेंसिक डेंटिस्ट्री कहते हैं। फिर इस साइंस के वैज्ञानिकों की मदद ली।
दांतों के निशान की फोटो और पकड़े गए आरोपियों के दांतों के साइज फरेंसिक लैब भेजे गए। जांच के लिए प्लास्टर ऑफ पेरिस से दांतों का जबड़ा बनवाया गया। दांतों के निशान के सामने स्केल रख कर उनकी क्लोजअप फोटो खींचीं गई थी। आरोपी के दांतों के निशान के साथ इसे मैच किया गया। चार आरोपियों में से दो आरोपी, विनय और अक्षय के दांतों के निशान निर्भया के शरीर पर पड़े निशानों से मेल पाए गए। यह सबूतों की अहम कड़ी थी।
धुंधली फुटेज में बस पर लिखा ‘यादव’ नजर आया
जांच से जुड़े अफसर के मुताबिक, उस दौरान टीम में 100 से अधिक पुलिसकर्मी आरोपियों की धरपकड़ से लेकर सबूत जुटाने के लिए लगाए गए। जिस बस में वारदात हुई। मुश्किल था उसे तलाशना। इसके लिए सबसे पहले करीब 250 बस की लिस्ट बनाई। तीन चार टीम बसों के रूट व उनकी पहचान में लगाई। सबका काम बांट दिया था। सीसीटीवी फुटेज खंगाले, पर इससे ज्यादा मदद नहीं मिली। बार फुटेज देखने से बस पर यादव लिखा हुआ टीम के कई मेंबर ने पढ़ा। क्लू और सर्च के लिए लाइन मिली। ड्राइवर या फिर क्लीनर को उस इलाके का ही होना चाहिए था ये सोचकर जांच आगे बढ़ी। पुलिस ने एक हफ्ते के अंदर न सिर्फ सभी आरोपियों को पकड़ लिया बल्कि महज़ 19 दिन के अंदर कोर्ट में 1000 पन्नों की चार्जशीट भी पेश कर दी।
एक-एक सबूत बना अहम
परिस्थितिजन्य साक्ष्य के लिए सबसे पहले निर्भया का एटीएम कार्ड, उसके कपड़े, दोस्त का पर्स, जूते, मोबाइल, घड़ी जैसी तमाम चीजें मौका ए वारदात से इकठ्ठा कीं। फिर फिजिकली साक्ष्य के लिए वो बस थी, जिसे मुजरिमों ने धो डाला था, उसमें फिंगर प्रिंट हासिल किया, लड़की के ब्लड व सीट के कपड़ों से लेकर फर्श में गिरे एक एक बाल को उठाया। सबूतों का तीसरा चरण डीएनए एविडेंस था। जिसमें सजा के लिए हर मुल्जिम का बॉडी टू बॉडी डीएनए।
लार से डीएनए जेनरेट किया गया
लार से भी डीएनए जेनरेट किया। नाखूनों के अंदर लड़की की चमड़ी भी जुटाई। चौथे चरण में पहली भारत में यूज की गई फॉरेंसिक डेंटिस्ट्री थी। जिसमें ऑडोंटोलॉजी के जरिए दांतों व जबड़े के आकार। उनका डीएनए। उसके आधार पर अपराधी का मिलान किया। तहकीकात का पांचवां पड़ाव टेक्निकल एविडेंस। जिसमें हर मुल्जिम के मोबाइल की लोकेशन, उसकी सीडीआर, मूवमेंट के एक एक सेकंड को टेक्निकल एनालिसिस के जरिए जुटाया।
Source: National