वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान पेश 2019-20 की अनुदान की पूरक मांगों के पहले बैच के दस्तावेज के अनुसार, ‘SSLV के विकास के लिए 11.97 करोड़ रुपये का प्रस्ताव किया गया है।’ संसद में अनुदान की पूरक मांगों पर चर्चा के बाद इसे मंजूरी मिल गई है। SSLV का विकास छोटे कमर्शल सैटेलाइट्स को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित करने के मकसद से किया जा रहा है।
इसकी अनुमानित लागत 30 करोड़ रुपये है। इसकी पहली उड़ान अगले साल के प्रारंभ में होने की संभावना है। ISRO की वेबसाइट से प्राप्त जानकारी के अनुसार, इसने अब तक 33 देशों के 319 सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में भेजा है। इन देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कोरिया, कनाडा, जर्मनी, बेल्जियम, इटली, फिनलैंड, इजराइल जैसे देश शामिल हैं।
इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस रिसर्च ऐंड एनालिसिस के वरिष्ठ फेलो कैप्टन अजय लेले ने बताया कि ISRO अपने अधिकांश उपभोक्ताओं के सैटेलाइट्स को पोलर सैटेलाइट्स लॉन्च वीइकल (PSLV) के जरिए लॉन्च करता है। हालांकि घरेलू प्रतिबद्धताओं और विभिन्न प्रकार के सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में भेजने की योजना को आगे बढ़ाने के क्रम में इस पर भार बढ़ता है।
उन्होंने कहा कि कई बार नैनो सैटेलाइट्स को भी PSLV के माध्यम से ही लॉन्च किया जाता है। ऐसे में ISRO को SSLV का विकास करने की जरूरत महसूस हुई। यह इस दिशा में भी महत्वपूर्ण है कि आने वाले समय में ISRO सैटेलाइट्स लॉन्चिंग के बड़े बाजार में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराना चाहता है।
विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एस सोमनाथ ने हाल ही में कहा था कि SSLV के माध्यम से छोटे सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में भेजना आसान होगा और कम खर्चीला होगा। उन्होंने कहा था कि इसके माध्यम से 500 किलोग्राम भार तक के सैटेलाइट्स को निचली कक्षा में स्थापित किया जा सकेगा।
Source: National