करॉना वायरस से पीड़ित लोगों में फ्लू जैसे लक्षण ही दिखते हैं, जैसे कि सर्दी-जुकाम और सांस लेने में तकलीफ। दिल्ली एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि अब तक साक्ष्यों से पता चलता है कि वायरस से कारण मौतों की दर बहुत ऊंची नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘सरकार ने संभावित प्रभावितों की जांच के लिए हवाई अड्डों पर थर्मल स्कैनर्स लगा दिए हैं। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नै, बेंगलुरु, हैदराबाद और कोचिन के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर थर्मल स्क्रीनिंग की जा रही है। अब तक एक भी वायरस पीड़ित व्यक्ति पकड़ में नहीं आया है। अगर किसी की पहचान होती भी है तो इस बीमारी को फैलने से रोकने के लिए अस्पतालों में पर्याप्त संसाधन और विशेषज्ञता है।’ उन्होंने कहा कि एम्स में क्यूबिकल्स हैं जहां छह-सात मरीजों को अलग रखकर इलाज किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जरूरत के मुताबिक, इसमें वृद्धि की जा सकती है।
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उधर, राम मनोहर लोहिया (आरमएल) और सफदरजंग अस्पतालों में भी बेहद कम वक्त में अलग से वार्ड्स बनाने की पर्याप्त जगहें हैं। प्रभावित लोगों को आम मरीजों से अलग रखने की व्यवस्था करनी पड़ सकती है। मौसमी सर्दी-जुकाम के तरह ही करॉना वायरस का संक्रमण भी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में हवा के जरिए फैलता है। जब प्रभावित व्यक्ति खांसता या छींकता है तो पास में खड़ा व्यक्ति भी संक्रमित हो जाता है। साथ ही, अगर पीड़ित व्यक्ति से संपर्क में आने पर भी वायरस के आने का खतरा होता है।
दिल्ली के ही साकेत स्थित मैक्स हॉस्पिटल के सीनियर कंस्लटेंट डॉ. रोमल टिक्कू ने कहा कि अभी चंद लोगों को ही करॉना वायरस के बारे में पता है। उन्होंने कहा, ‘देश में एक भी मामला सामने आने पर कोलाहल मच सकता है। इसलिए हमें लोगों को इसकी जानकारी देनी होगी और उन्हें इससे रोकथाम के उपाय बताने होंगे।’
पिछेल वर्ष भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) और राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC) के वैज्ञानिकों ने उन 10 उभरते संक्रामक रोगों की पहचान की थी जो भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकते हैं। इनमें मिडल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम करॉना वायरस (MERS-CoV) जो सबसे पहले 2012 में सऊदी अरब में सामने आया था और तब से यह 26 देशों में पहुंच चुका है। ICMR और NCDC देश के सबसे महत्वपूर्ण स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान हैं।
दिल्ली के ही सर गंगा राम अस्पताल में माइक्रोबायॉलजी डिपार्टमेंट के चेयरमैन डॉ. चांद वट्टल ने कहा, ‘नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरॉलजी, पुणे संक्रमण की जांच के लिए प्रोटोकॉल्स विकसित कर रहा है। अगले कुछ वर्षों में कुछ और प्रयोगशालाओं में संदिग्ध प्रभावितों की जांच की व्यवस्था की जाएगी।’ वहीं, केंद्रीय स्वास्थ सचिव प्रीति सुडान ने गुरुवार को कहा कि उन्होंने राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों से अस्पतालों की तैयारियों का जायजा लेने को कहा है।
Source: National