दिल्ली में क्यों जीतेगी?
1- जबरदस्त ध्रुवीकरण : बीजेपी ने में ध्रुवीकरण की आक्रामक पिच तैयार की। शाहीन बाग का प्रदर्शन मानो मुंह मागी मुराद जैसा हाथ लग गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित अन्य छोटे से लेकर बड़े नेता हर रैली और सभाओं में शाहीन बाग-शाहीन बाग का मुद्दा उछालते रहे। सभाओं में जनता के बीच सवाल उछालते रहे- आप शाहीन बाग के साथ हैं या खिलाफ? शरजील इमाम के असम वाले बयान, जेएनयू, जामिया हिंसा को भी बीजेपी ने मुद्दा बनाकर बहुसंख्यक वोटर्स को साधने की कोशिश की।
2- धुआंधार कैंपेनिंग : छोटे से केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली के लिए बीजेपी ने जितनी ताकत झोंक दी, उतनी बड़े-बड़े राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी मेहनत नहीं की। बीजेपी ने गली-गली मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, सांसद-विधायकों की फौज दौड़ा दी। कोई मुहल्ला नहीं बचा, जहां बड़े नेताओं ने नुक्कड़ सभाएं नहीं कीं। इससे बीजेपी ने अपने पक्ष में जबरदस्त माहौल बनाने की कोशिश की।
3- व्यापारियों का झुकाव : दिल्ली के व्यापारियों को सीलिंग का भय हमेशा सताता रहा है। व्यापारियों को लगता है कि केंद्र में बीजेपी की सरकार होने के कारण वह सीलिंग से राहत दिला सकती है। शायद यही वजह रही कि मतदान से एक दिन पहले शुक्रवार को दिल्ली के व्यापारियों के सबसे बड़े संगठन कैट ने बीजेपी को समर्थन देने का ऐलान कर दिया। इस संगठन से दिल्ली में 15 लाख व्यापारी जुड़े हैं, जिनका दावा है कि वे 30 लाख लोगों को रोजगार देते हैं। ऐसे में बीजेपी के साथ सचमुच व्यापारी समुदाय आया तो फिर पार्टी बेहतर कर सकती है।
4- सत्ता विरोधी लहर : दिल्ली में शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी को अगर छोड़ दें तो इंफ्रास्ट्रक्चर के मोर्चे पर अपेक्षित काम नहीं हुआ है। ऐसा दिल्ली के लोगों का मानना है। 2015 में आम आदमी पार्टी की प्रचंड लहर में चुनाव जीतने में सफल रहे विधायकों के बाद में जनता से दूर हो जाने की शिकायतें आम हैं। यही वजह है कि केजरीवाल को अपने कई विधायकों के टिकट काटने पड़े। पांच साल सत्ता में रहने पर केजरीवाल को सत्ता विरोधी लहर झेलनी पड़ सकती है।
5- बीजेपी की सौगातें : बीजेपी ने चुनावी घोषणापत्र के जरिए दिल्ली के लोगों के मन से यह डर निकालने की कोशिश की है कि उसकी सरकार बनने पर बिजली, पानी मुफ्त की योजना बंद हो जाएगी। बीजेपी ने इन योजनाओं के जारी रहने की बात कही है। साथ ही बीजेपी ने दिल्ली की 1700 से अधिक अवैध कालोनियों में रजिस्ट्री की शुरुआत कर वहां के लोगों में बैठे डर को दूर कर दिया। दो रुपये किलो की दर से आटा, गरीब बच्चियों को इलेक्ट्रिक स्कूटी, 376 झुग्गियों में रहने वाले दो लाख से अधिक परिवारों को दो-दो कमरे के मकान का वादा कर रिझाने की कोशिश की है। इन वादों पर अगर जनता ने भरोसा किया तो बीजेपी चुनाव में सबको चौंका सकती है।
बीजेपी क्यों हारेगी?
6- साइलेंट वोटर बना गरीब: केजरीवाल ने जिस तरह से दो सौ यूनिट बिजली और महीने में 20 हजार लीटर पानी मुफ्त कर दिया, उससे आम जन और गरीब परिवारों की जेब पर भार कम हुआ है। लाभ पाने वाला गरीब तबका चुनाव में साइलेंट वोटर बना नजर आ रहा है। बिजली कंपनियों के आंकड़ों की बात करें तो एक अगस्त को योजना की घोषणा होने के बाद दिल्ली में कुल 52 लाख 27 हजार 857 घरेलू बिजली कनेक्शन में से 14,64,270 परिवारों का बिजली बिल शून्य आया। लाभ पाने वाले अगर झाड़ू पर बटन दबाएं तो फिर आम आदमी पार्टी की वापसी की राह आसान होगी।
7-मुसलमानों का झुकाव : राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नागरिकता संशोधन कानून आने के बाद से मुस्लिमों की बड़ी आबादी के मन में डर बैठ गया है। मुसलमान उस पार्टी को वोट देना चाहते हैं जो बीजेपी को हराने में सक्षम हो। कांग्रेस में कहीं नजर नहीं आ रही है, ऐसे में मुसलमानों का अधिकतर वोट आम आदमी पार्टी को जाना तय माना जा रहा है। दिल्ली में सीलमपुर, ओखला आदि सीटों पर मुस्लिम निर्णायक स्थिति में हैं।
8- महिलाओं को भी आप ने बनाया वोट बैंक : आम आदमी पार्टी ने जितना महिलाओं पर फोकस किया, उतना बीजेपी ने नहीं। केजरीवाल सरकार ने बसों में 30 अक्टूबर को भैयादूज के दिन से मुफ्त सफर की महिलाओं को सौगात दी। एक आंकड़े के मुताबिक प्रतिदिन करीब 13 से 14 लाख महिलाएं दिल्ली में बसों में सफर करती हैं। ऐसे में महिलाओं को अगर झाड़ू की बटन पसंद आई तो फिर बीजेपी के लिए दिक्कत हो जाएगी।
9- स्कूलों की फीस न बढ़ने देना : दिल्ली में स्कूलों की हालत सुधरने को जो दावे हों, मगर सबसे ज्यादा लाभ प्राइवेट स्कूलों की फीस पर अंकुश लगाने से मध्यमवर्गीय जनता को पहुंचना बताया जा रहा है। आम आदमी पार्टी के ही एक सूत्र के मुताबिक दिल्ली में अधिकांश स्कूल कांग्रेस और बीजेपी नेताओं के चलते हैं। ऐसे में केजरीवाल ने फीस पर नकेल कस दी। इसका लाभ मध्यमवर्गीय परिवारों को हुआ है। यह वर्ग मतदान में भी बड़ी भूमिका निभाता है।
10- बीजेपी की सेना बनाम अकेले खड़े केजरीवाल: राजनीतिक विश्लेषकों के एक वर्ग का मानना है कि बीजेपी का हद से ज्यादा आक्रामक चुनाव प्रचार अभियान फायदा देने की जगह नुकसान भी दे सकता है। केजरीवाल खुद बीजेपी की भारी-भरकम बिग्रेड का बार-बार हवाला देते हुए खुद को अकेला बताते हैं। ऐसे में जनता की अगर केजरीवाल के प्रति सहानुभूति उमड़ी तो फिर बीजेपी के लिए दिक्कत हो सकती है।
Source: National