पुलवामा शहीद को भूले नेता-अफसर, बेघर होने की कगार पर परिवार

विकास पाठक, वाराणसी
जम्मू-कश्मीर के में आतंकी हमले को आज एक साल हो गया। इस हमले में वाराणसी के भी हो गए थे। बरसी पर कोई अफसर या नेता रमेश के घर नहीं पहुंचा। कुछ संस्‍थाओं की ओर से शहीद की याद में कार्यक्रम जरूर आयोजित किए गए। परिवार की सुध लेने वाला कोई नहीं है और सिर पर छत का खतरा मंडराने लगा है।

देश के लिए अपनी जान न्‍योछावर करने वाले शहीद रमेश के परिजन से पिछले साल मंत्रियों समेत अफसरों ने तमाम वादे और दावे किए थे। उत्तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने तो जिलाधिकारी और एसएसपी को निर्देश दिया था कि बरसी पर शहीद के घर जाकर परिजन का हाल-चाल जरूर लें। बावजूद इसके शुक्रवार शाम चार बजे तक किसी बड़े या छोटे अफसर या फिर किसी जनप्रतिनिधि को रमेश के चौबेपुर स्थित आवास पहुंचने की फुर्सत नहीं मिली। यहां तक कि सत्ताधारी दल के स्‍थानीय नेता भी शहीद को भूल गए।

तिरंगा यात्रा में मासूम आगे
रमेश यादव के गांव तोहफापुर में देशभक्ति से लबरेज युवाओं ने भाई की शहादत को सलाम करने के लिए तिरंगा यात्रा निकाली। तिरंगा यात्रा में शहीद का तीन साल का बेटा आयुष तिरंगा लिए सबसे आगे रहा। तिरंगा थामे शहीद के बेटे को देख गांववालों की आंखे नम हो गई। शहीद की पत्‍नी ने घर पर ही रहकर पूजा की। समाजवादी पार्टी की ओर से शहीद के घर से काफी दूर गांव के प्राथमिक विद्यालय में शहादत दिवस का आयोजन किया गया। उधर, मानव अधिकार मिशन के कार्यकर्ताओं ने वाराणसी शहर के आजाद पार्क में शहीदों की याद में प्रार्थना सभा और हवन किया। युवक कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने पांडेपुर चौराहे पर श्रद्धांजलि सभा की।

छूठे वादे पर कट रही जिंदगी
शहीद रमेश यादव की पत्‍नी रेनू का कहना है कि मंत्री और विधायकों ने बड़े-बड़े वादे किए थे। लेकिन शहीद के नाम पर अब तक न तो सड़क बनी और न ही रमेश के नाम पर द्वार बना। मूर्ति और स्‍मारक बनवाने का आश्‍वासन भी अब तक पूरा नहीं हुआ है। शहीद की याद में वन विभाग द्वारा लगाए गए पौधे भी सूख गए हैं। हालांकि रमेश की पत्‍नी को सरकारी नौकरी मिली है।

बेघर होने को है शहीद का परिवार
शहीद के पिता श्‍याम नारायण यादव दूध बेचकर घर का खर्च चला रहे हैं। बताया कि सरकार की ओर से मकान देने का वादा किया गया था, लेकिन बाद में नियमों का हवाला देकर पीछा छुड़ा लिया। श्‍याम नारायण के मुताबिक उनके हिस्‍से का मकान पट्टीदारी के बंटवारे में उनके भाइयों के नाम हो चुका है। ऐसे में मकान के नाम पर बने दो कमरे तोड़ दिए जाएंगे। सरकार अगर वादा पूरा कर देती तो परिवार के सिर पर छत बनी रहती।

Source: International

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