केजरी के शपथ में विपक्ष नहीं, क्या संकेत?

नई दिल्ली
दिल्ली में लगातार तीसरी बार आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार बनी है। साथ ही ने भी मुख्यमंत्री बनने की हैटट्रिक लगाई है। को भव्य और आम लोगों का दिखाने के लिए कई तरह के इंतजाम देखे गए। शपथ समारोह के मंच पर दिल्ली को संवारने में योगदान देने वाले 50 विशेष अतिथि बिठाए गए जिनमें डॉक्टर, टीचर्स, बाइक ऐम्बुलेंस राइडर्स, सफाई कर्मचारी, कंस्ट्रक्शन वर्कर्स, बस मार्शल, ऑटो ड्राइवर आदि रहे। हालांकि खास बात ये रही कि इस शपथग्रहण समारोह के लिए केजरीवाल ने किसी विपक्षी दल के नेता को नहीं बुलाया था। राजनीतिक गलियारों में चर्चा शुरू हो चुकी है कि क्या केजरीवाल एकला चलो की रणनीति को अपना रहे हैं?

कुमारस्वामी के शपथ के बाद से विपक्ष ने नहीं दिखाया कभी एकजुटता
साल 2018 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी सिद्दारमैया की सरकार को हराकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर आई थी, लेकिन ये बहुमत के आंकड़े से दूर रही गई थी। बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए कांग्रेस ने महज 37 सीट जीतने वाली जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनवा दिया था। कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह के बहाने कांग्रेस ने दर्शाने की कोशिश की थी। इस शपथ ग्रहण समारोह में बीजेपी का विरोध करनी वाली लगभग सारी छोटी-बड़ी पार्टियों के नेता मंच पर पहुंचे थे। सभी नेता मंच पर हाथ मिलाकर खड़े होकर विपक्षी एकता का संदेश दिया था। कई मौकों पर विपक्षी दलों के नेता केजरीवाल की पार्टी को विपक्षी बैठकों में बुला चुके हैं। लेकिन अपने शपथग्रहण में केजरीवाल ने किसी नेता को नहीं बुलाया।

2015 में भी विपक्ष को एकजुट नहीं कर पाए थे केजरीवाल
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा जैसे राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी सत्ता में आई थी। इस वक्त बीजेपी अपने चरम पर दिख रही थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर बीजेपी को जनता का भरपूर समर्थन मिल रहा था, ऐसे वक्त में दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी को पहला झटका लगा था। अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया था।

इतनी बड़ी जीत के बाद उम्मीद की जा रही थी कि केजरीवाल अपने शपथग्रहण समारोह के बहाने विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश करेंगे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। केजरीवाल के शपथ समारोह में कोई भी बड़ा विपक्षी नेता नहीं पहुंचे थे। अब एक बार फिर 2020 में भी केजरीवाल ने अपने शपथग्रहण समारोह के मंच पर किसी भी विपक्षी नेता को नहीं बुलाया।

विपक्षी एकता के मंच पर दिखते रहे हैं केजरी
केजरीवाल भले ही अपने मंच पर बीजेपी विरोधी पार्टियों को जगह देने से परहेज करते रहे हैं, लेकिन वह खुद विपक्षी दलों के साथ मंच साझा करते रहे हैं। 2015 में बिहार में लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी और नीतीश की पार्टी मिलकर सत्ता में आई थी। नीतीश के शपथ ग्रहण समारोह में केजरीवाल बतौर सीएम पहुंचे थे। इस दौरान मंच पर भ्रष्टाचार के मामले में फंसे लालू से उनकी मुलाकात काफी सुर्खियां बनी थी। इसके अलावा केजरीवाल कुमारस्वामी के शपथग्रहण समारोह में संजय सिंह को प्रतिनिधि के रूप में भी भेज चुके हैं।

क्या विपक्षी दलों से खुद को अलग दिखाना चाहते हैं केजरीवाल
बड़ा सवाल यह है कि अपने शपथ ग्रहण समारोहों में विपक्षी दलों के नेताओं को नहीं बुलाकर केजरीवाल क्या संदेश देना चाहते हैं। केजरीवाल के हालिया राजनीतिक फैसलों पर नजर डालें तो पता चलता है कि कई मौकों पर उन्होंने विपक्ष के दूसरे दलों से अलग जाकर स्टैंड लिया है। जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर जहां कांग्रेस सहित कई विपक्षी दल बीजेपी के खिलाफ मुखर रही है, लेकिन केजरीवाल इनसे अलग गए और इस मुद्दे पर मोदी सरकार का समर्थन किया था।

शाहीन बाग से रहे दूर
इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का विरोध करने वालों के खिलाफ खूब हल्ला बोला। बीजेपी ने शाहीन बाग के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। बीजेपी की ओर लाख उकसाने के बावजूद केजरीवाल नहीं डगमगाए और इन मुद्दों पर कभी भी कुछ भी खुलकर नहीं बोले।

राम मंदिर पर भी लिया अलग स्टैंड
चुनाव प्रचार के दौरान जब केंद्र सरकार ने अध्योध्या में राम मंदिर निर्माण के ट्रस्ट बनाने का घोषणा की तो जहां कांग्रेस ने इसपर सवाल उठाए, वहीं केजरीवाल ने कहा कि अच्छे कामों के लिए कोई वक्त नहीं होता है। इसके अलावा चुनाव में खुद को राम भक्त बताने वाली बीजेपी से मुकाबले के लिए केजरीवाल बार-बार हनुमान मंदिर तस्वीरें क्लिक करवाते देखे गए।

केजरीवाल ने खुद को बताया ‘कट्टर देशभक्त’
बीजेपी ने जब केजरीवाल के लिए आतंकवादी शब्द का प्रयोग किया तो उन्होंने खुद को कट्टर देशभक्त बताया था। उनके इन सारे फैसलों से स्पष्ट है कि वह अन्य विपक्षी दलों की तरह सेक्युलरिज्म की बात करने के बजाय सॉफ्ट हिंदुत्व का मैसेज दे रहे हैं।

कई विपक्षी नेताओं ने दी थी केजरीवाल को बधाई
दिलचस्प बात यह है कि इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की प्रचंड जीत के बाद कई विपक्षी नेताओं ने अरविंद केजरीवाल को बधाई दी थी। बधाई देने वालों में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, नवीन पटनायक जैसे नेता शामिल रहे। दिल्ली चुनाव में कारारी हार झेलने वाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम पार्टी की हार के प्रति दुखी होने के बजाय आप की जीत का जश्न मनाते दिखे। वे इसी बात से खुश दिखे की दिल्ली में बीजेपी की हार हुई है।

Source: National

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