वाराणसी के से संबंधित मुकदमे में सिविल कोर्ट के क्षेत्राधिकार को चुनौती देने वाली अर्जी पर गुरुवार से सुनवाई शुरू हो गई। स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से बहस में दलील दी गई कि विवादित संपत्ति (ज्ञानवापी मस्जिद) मंदिर है। इसका धार्मिक स्वरूप मंदिर से मस्जिद में परिवर्तित नहीं हुआ है। ऐसे में मुकदमे की सुनवाई का अधिकार सिविल कोर्ट को है, ना कि वक्फ ट्रिब्यूनल को।
सिविल जज (सीनियर डिवीजन-फास्ट ट्रैक कोर्ट) आशुतोष तिवारी की कोर्ट में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से ज्ञानवपी में नए मंदिर के निर्माण तथा हिंदुओं को पूजा-पाठ का अधिकार देने को लेकर मुकदमे की सुनवाई चल रही है। विपक्षी (लखनऊ) की ओर से कोर्ट के क्षेत्राधिकार पर उठाए गए सवाल पर गुरुवार को करीब दो घंटे तक बहस हुई। भगवान विश्वेश्वर की ओर से वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने बहस करते हुए सुन्नी वक्फ बोर्ड की आपत्ति पर कड़ा प्रतिवाद किया।
वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने बहस में कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद का जिस वक्फ ऐक्ट 1954 के तहत रजिस्ट्रेशन होना बताया गया है, वह एक्ट यूपी में लागू ही नहीं हुआ था। यही नहीं बिना हिंदू पक्ष को नोटिस दिए और उसका पक्ष जाने बिना वक्फ में रजिस्ट्रेशन जाना अवैध है। ऐसे में इसकी हिंदू पक्ष पर इसकी बाध्यता लागू नहीं होती है। यह भी कहा गया कि विवादित स्थल पर स्वयंभू ज्योतिर्लिंग का अरघा आज भी होने से इसका स्वरूप का है। इस स्थिति में मुकदमे की सुनवाई का अधिकार सिविल कोर्ट को ही है। कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड की बहस के लिए 25 फरवरी की तिथि नियत की है।
बता दें कि 22 साल बाद मुकदमे की सुनवाई शुरू होने पर वाद मित्र की ओर से ज्ञानवापी परिसर का धार्मिक स्वरूप तय करने के लिए एएसआई से पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की अर्जी दी गई है। इस पर सुनवाई रोकने के लिए विपक्षी सुन्नी वक्फ बोर्ड तथा अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की ओर से लगातार आपत्तियां दाखिल की जा रही है।
Source: International