मुझे पद से हटाने के पीछे देवड़ा-अंबानी: निरुपम

मुंबई
का बिगुल फूंके जाने के साथ में कलह शुरू हो गई। कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि उनके उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया गया, जिसके बाद उन्होंने पर जोरदार हमला करना शुरू कर दिया। एनबीटी ऑनलाइन ने संजय निरुपम से बातचीत की। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), अनिल अंबानी और कांग्रेस नेता ने उन्हें मुंबई कांग्रेस अध्‍यक्ष के पद से हटाने के लिए प्लान बनाया था। बता दें कि पत्रकारिता से करियर की शुरुआत करने वाले संजय निरुपम शिवसेना छोड़कर वर्ष 2005 में कांग्रेस के साथ आए थे।

आपने 2005 में कांग्रेस जॉइन की। कई जिम्मेदारियां निभाने के बावजूद आपको दरकिनार क्यों किया गया?
जवाब- यह सब पिछले वर्ष जून- जुलाई में शुरू हुआ जब जनरल सेक्रटरी इंचार्ज मल्लिकार्जुन खड़गे आ गए। उस समय के राफेल कैंपेन के साथ मैं भी अनिल अंबानी और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खिलाफ सड़क पर उतरा था। एकदम से बीजेपी और अनिल अंबानी ने प्लान बनाया कि संजय निरुपम को मुंबई कांग्रेस अध्‍यक्ष के पद से हटाओ। उस प्लान का हिस्सा हमारी पार्टी के कुछ लोग बन गए, जिसमें मुख्यतौर पर मिलिंद देवड़ा हैं। वह अनिल अंबानी के खास मित्र हैं। ‘मिलिंद देवड़ा को लाओ, संजय निरुपम को हटाओ’ यह कैंपेन शुरू किया गया। इसे समझने की जिम्मेदारी खड़गे जी की थी लेकिन वह समझे नहीं। मेरे खिलाफ जो कैंपेन चल रहा था, उसे दबाने के बजाए खड़गे जी साजिश का शिकार हो गए।

पढ़ें:

संजय निरुपम ने कहा, ‘विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार तय करने में मेरी कोई भूमिका ही नहीं रखी गई। मैंने उनसे कहा कि मैं मुंबई की 36 सीटों के लिए खास नाम बता सकता हूं लेकिन मैं सभी सीटों के लिए नाम नहीं दे रहा हूं। मेरे लोकसभा क्षेत्र में कई सीटों पर हालत बहुत खराब है, वहां के लिए मैं कुछ नाम दे रहा हूं, जिन्हें आप टिकट दे सकते हैं। जहां मैं रहता हूं, वहां पर बस एक सीट दे दीजिए। मैं एक एमएलए जिताकर लाऊंगा। इसके बावजूद टिकट नहीं दिया गया। इसका मतलब आपकी नजरों में मेरी कोई इज्जत नहीं, फिर मैंने विरोध शुरू कर दिया।’

आपने कहा कि दिल्ली में बैठे लोगों में समझ की कमी है। फीडबैक सिस्टम भी खत्म हो गया है। इसकी वजह की कांग्रेस है या राहुल गांधी की?
जवाब- मैं बहुत ज्यादा सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ कांग्रेस को बांटकर नहीं देख रहा हूं। इनके अलावा बहुत सारे नेता हैं, जो पार्टी में वर्षों से कुंडली मारकर बैठे हैं। वही पार्टी की आंख, नाक, कान हैं। कोई भी अध्यक्ष हो पार्टी वही चलाते हैं। अब हालात ऐसे हैं कि ये सब आउटडेटेड हो चुके हैं। उनके पास नए आइडियाज नहीं है, नया अप्रोच नहीं है। हैरानी वाली बात यह है कि आज फुटबॉल खेला जा रहा है लेकिन आप क्रिकेट के नियम से फुटबॉल खेल रहे हैं। बीजेपी ने भारतीय राजनीति में पूरा व्याकरण बदल दिया है, नई शब्दावली के साथ आए हैं। राजनीति का ककहरा पूरी तरह बदल चुका है। हम आज भी पुराने जमाने में बैठे हैं। हमें नए अंदाज में आना पड़ेगा। यदि ऐसा नहीं होगा तो मुझ जैसे लोगों को कष्ट होगा, मैं कह देता हूं लेकिन बहुत लोग अपनी बात कह नहीं पाते हैं।

पढ़ें:

सलमान खुर्शीद ने कहा कि राहुल गांधी को इस्तीफा नहीं देना चाहिए, जिसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि कांग्रेस के लिए आत्मचिंतन का वक्त है, आपको भी यही लगता है?
जवाब- यह कहना गलत नहीं है। यदि आपके शरीर में कोई खराबी आ जाती है तो आप स्वीकार करते हैं कि बीमारी है। आज अगर किसी को कैंसर हो जाता है और वह साहस के साथ लड़ने की ठानता है तो उसकी समाज में तारीफ होती है। इसी तरह पार्टी हमारा शरीर है, यदि पार्टी में कोई कमी है तो इसे स्वीकार करने में कोई गलत बात नहीं है। इस कमी को कोई बाहर का आदमी नहीं बल्कि अंदर के लोग ही ठीक कर पाएंगे। कांग्रेस के लोगों को ही स्वीकार करना होगा कि गलतियां हो रही हैं, फिर इन्हें ठीक करने के लिए कदम उठाना पड़ेगा। राहुल गांधी को इस्तीफा देने की कोई जरूरत नहीं थी। उन्होंने लोकसभा चुनाव बहुत अच्छे ढंग से लड़ा था। उनके कैंपेन में कहीं कमी नहीं थी। हारने के कई कारण होते हैं। बाकी हार गए तो हार गए लेकिन इसकी जवाबदेही खुद पर लेना सही नहीं है। पुराने लोग, जो कुंडली मारकर बठे हैं वह यही चाहते थे कि हार की जवाबदेही राहुल खुद पर लें और निकलें।

तीन राज्यों में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, इसके बावजूद राहुल गांधी के हटने का फैसला, क्या यह सही वक्त था?
जवाब- तीन राज्यों (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान) में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। पंचायत चुनाव में भी यदि हार होती है तो एक कैंपेन शुरू हो जाता है कि हमें शिकस्त मिली। बीजेपी से ज्यादा तो अपने ही लोग कैंपेन शुरू कर देते थे। जीत पर भी उतने ही मन से उनकी (राहुल गांधी) तारीफ होनी चाहिए थी। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं, उनसे भी गलतियां हो सकती हैं लेकिन बीजेपी बढ़-चढ़कर उजागर नहीं करती। उनकी एक छोटी सी उपलब्धि को भी बड़ा बताया जाता है।

उद्धव ठाकरे का कहना है कि थके हुए विपक्ष का राजनीतिक परिदृश्य से सफाया हो जाएगा, इस पर आपका कोई कॉमेंट?
जवाब- सुशील कुमार शिंदे, जो 70 वर्ष आयु पार कर चुके हैं, वह हमारे नेता हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस और एनसीपी दोनों थक गई हैं, अब दोनों को एकजुट हो जाना चाहिए। ऐसा बयान उन्हें नहीं देना चाहिए था। जब कांग्रेस के लोग इस तरह का बयान देंगे तो लोग बोलेंगे ही। वोटर कहेंगे कि आप तो थक गए हो, फिर आपको क्यों वोट दिया जाए।

पत्रकारिता से आपने करियर की शुरुआत की और सोनिया गांधी के आलोचक के रूप में जाने जाते थे, शिवसेना से वर्ष 2005 कांग्रेस में एंट्री की वजह क्या थी?
जवाब- 2002-2005 तक जब मैं राज्यसभा में था तो सरकार के कामकाज को लेकर मैं टिप्पणी करता था, उसको लेकर समय-समय पर मुझे घेरा गया। मैंने कहा कि जो गलत है उसे तो बोलना पड़ेगा और गलतियों पर यदि नहीं बोलने देंगे तो पार्टी के अंदर दम घुटने लगेगा। ऐसे में पार्टी में रहना कैसे संभव है। शिवसेना मैंने छोड़ दी, फिर कई पार्टियों से मुझे ऑफर मिला। मैंने तय किया कि मुझे कांग्रेस के साथ मुंबई में काम करना चाहिए।

क्या आप फिर से शिवसेना जॉइन करेंगे?
जवाब- मैं कांग्रेस छोड़ने के मूड में नहीं हूं लेकिन पार्टी के सामने यह विकल्प हमेशा खुला है कि वह मुझे कभी भी निकाल सकती है। इसके साथ मेरे पास भी विकल्प है कि मैं कभी भी पार्टी छोड़ सकता हूं। यदि मुझे निकाल दिया गया तो यह फैसला बाकी पार्टियों को करना है कि क्या वह मुझे रखना चाहती हैं। फिलहाल मेरे मन में तो नहीं है मैं कांग्रेस पार्टी छोड़ दूं।

Source: National

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *