मछली निर्यात के मामले में भारत को पहले स्थान पर आने का प्रयास करना चाहिए : उपराष्ट्रपति

नई दिल्ली : उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडू ने आज कहा कि कोविड-19 भारत के मत्स्य पालन क्षेत्र के लिए एक बड़े बदलाव का माध्यम साबित हो सकता है क्योंकि महामारी ने लोगों को पोषक आहार की आदतें अपनाने के प्रति जागरूक किया है।

विशाखापत्तनम में केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआई)और केंद्रीय मत्स्य प्रौद्योगिकी संस्थान (सीआईएफटी) में आज वैज्ञानिकों और कर्मचारियों को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि मछली प्रोटीन का एक बड़ा स्रोत है और देश में कुपोषण को कम करने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने स्वास्थ्य विशेषज्ञों और पोषण विशेषज्ञों से देश में लोगों और विशेषकर बच्चों को पोषक आहार के रूप में मछली के महत्व के बारे में जागरुक बनाने के लिए कहा। उपराष्ट्रपति ने कहा “मछली ओमेगा -3 फैटी एसिड से समृद्ध है, जो हमारे शरीर के लिए आवश्यक है और हृदय को स्वस्थ्य बनाए रखने के लिए अच्छा है। मछली के बारे में इस जानकारी को लोकप्रिय बनाने और आम आदमी तक पहुंचाने की जरूरत है।”

नायडू ने कहा कि हिमालय के स्निग्ध जलक्षेत्रों से लेकर 8000 किलोमीटर से अधिक लंबी तटरेखा तक, भारत विशाल जल संसाधनों से समृद्ध है । उन्होंने कहा, “ये जल क्षेत्र मछलियों की कई प्रकार की प्रजातियों से संपन्न हैं, जो कई पीढ़ियों से लाखों लोगों की आजीविका का माध्यम बनी हुई हैं।”

उपराष्ट्रपति ने भारत के कुल मछली उत्पादन में दुनिया में दूसरे स्थान पर होने का जिक्र करते हुए कहा अभी भी देश के अंदर के जलीय क्षेत्रों तथा समुद्री क्षेत्रों का मत्स्य पालन के लिए दोहन की बहुत अधिक संभावना है। उन्होंने आगे कहा कि एक लघु उद्योग के रुप में मामूली शुरुआती के साथ मत्स्य पालन पिछले कुछ दशकों में हमारे देश के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक शक्ति बन गया है और वर्तमान में देश के तटवर्ती क्षेत्रों में लगभग डेढ़ करोड़ लोगों को रोजगार प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि भारत दुनिया में मछली का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक है और यह क्षेत्र विदेशी मुद्रा अर्जित करने में प्रमुख भूमिका निभा रहा है। उन्होंने भारत को मछली निर्यात के मामले में पहले स्थान पर आने का प्रयास करने का आह्वान किया।

श्री नायडू ने देश में तेजी से बढ़ती आबादी और इसके साथ ही जीवों से प्राप्त होने वाले प्रोटीन की मांग बढ़ने की संभावनाएं देखते हुए कहा कि ऐसे में मछली की घरेलू आवश्यकता में काफी वृद्धि का अनुमान है जिसे देखते हुए भारत में वार्षिक मछली उत्पादन की मांग और आपूर्ति में अंतर को कम करने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि मछली पालन और गहरे समुद्र में मछली पकड़ने की गतिविधियों मात्र से मांग को पूरा नहीं किया जा सकता है इसके लिए सामान्य समुद्री क्षेत्र में मछली पकड़ने की गतिविधियों को बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि 8000 किलोमीटर के समुद्री तटवर्ती समुद्र तट क्षेत्र में मछली पकड़ने की गतिविधियों को बढ़ाने की अपार संभावनाएं हैं। इसके लिए कृत्रिम रूप से बनाए गए समुद्री क्षेत्र में मछली पालन की तकनीक को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। उन्होंने इस संबंध में सीएमएफआरआई और सीआईएफटी द्वारा​ किए गए कार्यों की सराहना की और कहा कि इस दिशा में अभी और भी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।

श्री नायडू ने कहा कि कई वर्षों से प्रजनन के लिए गुणवत्ता वाली मछली के बीजों की उपलब्धता में कमी एक बड़ी चिंता का विषय है, लेकिन शोध संस्थानों के प्रयासों ने इस समस्या को एक हद तक कम कर दिया है, लेकिन अभी भी इस क्षेत्र में नवाचार की बहुत गुंजाइश है। इसी प्रकार, उन्होंने उत्पाद की बेहतर गुणवत्ता, गुणवत्ता आश्वासन और पैकेजिंग द्वारा उच्चतम गुणवत्ता, स्थिरता और विश्वसनीयता को बनाए रखते हुए, मूल्य-संवर्धन में सुधार करने की आवश्यकता पर भी बल दिया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि न्यूट्रीशनल प्रोडक्ट्स जैसे न्यूट्रास्युटिकल्स और सजावटी मछली पालन में निवेश करके भारतीय मछली पालन के क्षेत्र में विविधता लाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि कोल्ड स्टोरेज जैसे आवश्यक बुनियादी ढांचे का निर्माण करके फसल के बाद के नुकसान को कम करने पर ध्यान देने की आवश्यकता है। उपराष्ट्रपति ने नगर निकायों से स्वच्छ और आकर्षक मछली बाजार बनाने में विशेष रुचि लेने को कहा।

जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में अति बदलाव पर चिंता व्यक्त करते हुए श्री नायडू ने कहा कि दुर्भाग्य से इसका सबसे अधिक दुष्प्रभाव समुद्रों और महासागरों पर देखा जा रहा है। इसकी वजह से कई स्थानों पर समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है, समुद्र का पानी गर्म हो रहा है और उसमें अम्लीयता बढ़ रही है। इन सबका समुद्री जीवों के साथ ही मानवों पर भी बुरा असर पड़ रहा है।

उन्होंनें मछली पकड़ने के लिए मशीनी नौकाओं के इस्तेमाल पर भी चिंता जताई और कहा कि गहरे समुद्र में मछली पकड़ने की गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

ऐसा अनुमान है कि विश्व स्तर पर समुद्री क्षेत्र का मछली उत्पादन 2100 तक 6 प्रतिशत घट जाएगा उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में यह गिरावट 11 प्रतिशत तक की होगी।

भारत में मत्स्य पालन के से जुड़े मुद्दों का तत्काल समाधान तलाशने पर जोर देते हुए, उपराष्ट्रपति ने इसके त्रिस्तरीय रणनीति जैसे जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान के लिए संसाधनों का प्रबंधन और शमन; एक्वाकल्चर में नवाचार और उत्पादन क्षमता में सुधार करने के लिए बेहतर मूल्य संवर्धन और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के लिए उत्पादन के बाद की सुविधाओं में सुधार पर जोर दिया।

उपराष्ट्रपति ने मत्स्य पालन के लिए प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (पीएमएमएसवाई)और एक स्वस्थ, आर्थिक रूप से व्यवहारिक और सामाजिक रूप से विकसित मत्स्य पालन क्षेत्र के लिए आगामी राष्ट्रीय मत्स्य नीति जैसी कई पहल करने के लिए सरकार की सराहना की।

श्री नायडू ने आगे चलकर मुछुआरों के लिए ऋण की सुविधा बढ़ाने, कोल्ड चेन विकसित करने और बेहतर बाजार संपर्क बनाने और फसल के बाद भंडारण, हैंडलिंग और मूल्य संवर्धन के लिए बेहतर बुनियादी ढांचा प्रदान करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि मछली पालन क्षेत्र के लिए सरकारी प्रयास अनुसंधान संस्थानों को अधिक से अधिक अनुसंधान एवं विकास सहायता, मछली और झींगा पालन के लिए क्षेत्र विकसित करने तथा इसमें निजी निवेश में वृद्धि, और जलीय कृषि सम्पदाओं की स्थापना, मिलों और सहायक उद्योगों की स्थापना के रूप में होने चाहिए।

श्री नायडू ने सीएमएफआरआई और सीआईएफटी के वैज्ञानिकों से कहा कि कृपया आप लोग याद रखें कि आपके द्वारा किए गए शोध मछुआरों के जीवन में सुधार करने और उन्हें लाभान्वित करने में परिवर्तित होने चाहिएं। उन्होंने कोविड महामारी के बावजूद रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन के लिए किसानों के साथ ही मछली उत्पादकों की भी सराहना करते हुए कहा “मैं आप सबको सलाम करता हूं।”

उपराष्ट्रपति ने अनुसंधान संस्थाओं से कहा कि वह छोटे मछली उत्पादकों को नई तकनीक अपनाने के लिए प्रोत्साहित करें और साथ ही आम लोगों को पोषक आहार के रूप में मछली के महत्व के बारे में जागरूक बनाएं। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में मछली पालन आय का एक अच्छा साधन साबित होगा और लाखों लोगों को गरीबी से निजात दिलाएगा। सही मायने में यही नीली क्रांति का मुख्य उद्देश्य भी है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारी लंबी तटरेखा हमारी ताकत होनी चाहिए कमजोरी नहीं। इसके लिए क्षेत्र में भारत को समुद्री क्षेत्र में मौजूद संभावनाओं की खोज करते हुए एक सुरक्षा प्रदाता के रूप में उभरने का प्रयास करना चाहिए।

वैज्ञानिकों के साथ बातचीत करने से पहले, उपराष्ट्रपति ने आज विशाखापत्तनम में सीएमएफआरआई और सीआईएफटी के संग्रहालयों का दौरा किया और दोनों संस्थानों को मत्स्य क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए बधाई दी। कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से किसी भी वैज्ञानिक संस्थान में उपराष्ट्रपति का यह पहला व्यक्तिगत दौरा था। इस अवसर पर उन्होंने राष्ट्र के लिए स्नैपर बीज भी समर्पित किया।

इस अवसर पर आंध्र प्रदेश के पर्यटन और युवा मामलों के मंत्री श्री मुत्तसेट्टी श्रीनिवास राव, आईसीएआर सीएमएफआरआई के निदेशक डॉ. ए. गोपालकृष्णन, एसआईसी,आईसीएआर -सीआईएफटी अनुंसधान केन्द्र के डॉ. आर रघु प्रकाश, आईसीएआर -सीएमएफआरआई के संस्थान प्रबंधन समिति के सदस्य श्री के मुरलीधरन, आईसीएआर -एसीएमएफआरआई के वैज्ञानिक श्री शुभदीप घोष और संस्थान के कई कर्मचारी तथा गणमान्य लोग उपस्थित थे।

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