नई दिल्ली-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार (25 अगस्त) को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कई अहम विषयों पर बात की. उन्होंने भगवान श्री कृष्ण और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को याद किया. साथ ही स्वच्छता अभियान, फिट इंडिया समेत कई मुद्दों पर अपनी बात रखी. लेकिन, सबसे ज्यादा जरूरी मुद्दा था प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण को दूर करना.
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस बार 2 अक्टूबर को जब बापू की 150वीं जयंती मनाई जाएगी तो वे इस मौके पर पूरे देश में प्लास्टिक के खिलाफ एक नए जन-आंदोलन की नींव रखेंगे. लेकिन देश में तो अब भी विभिन्न स्थानों पर प्लास्टिक के खिलाफ आंदोलन चल रहा है. देश और दुनिया में प्लास्टिक के प्रदूषण को कम करने के नए-नए इनोवेशन किए जा रहे हैं. कहीं घर रोशन हो रहे हैं तो कहीं सड़कें बन रही हैं. यही इनोवेशन प्रधानमंत्री के सपनों को पूरा करेंगे.
1. प्लास्टिक के बल्बों से रोशन हो रहे कर्नाटक के घर
लिटर ऑफ लाइट एक वैश्विक अभियान है जो 27 देशों में चल रहा है. भारत में इसकी शुरुआत कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु से 2013 में हुई. इसे शुरू किया 31 वर्षीय तृप्ति अग्रवाल ने. इस प्रोजेक्ट के तहत तृप्ति अब तक सैकड़ों झुग्गी बस्तियों को प्लास्टिक की बोतलों से रोशन कर चुकी हैं. प्लास्टिक की बोतल से रोशनी का आइडिया सबसे पहले 2002 में ब्राजील के अल्फ्रेडो मोजर को आया था.
इसमें प्लास्टिक की बोतल में पानी भरकर छत में एक छेद करके लटका दिया जाता है. इस पानी में ब्लीचिंग पाउडर डाल दिया जाता है ताकि पानी में एल्गी न लगे. जब सूरज की रोशनी छत पर पड़ती है तब पानी से भरे इस प्लास्टिक बोतल से घर का कमरा रोशन हो जाता है. तृप्ति ने कुंदवाड़ा झुग्गी-बस्ती को गोद लिया. यहां स्ट्रीट लाइट में भी प्लास्टिक का उपयोग किया. सोलर पैनल से जलने वाली LED स्ट्रीट लाइट को प्लास्टिक से चारों तरफ से घेर दिया जाता है. इससे वह बारिश और गंदगी से बचता है.
2. प्लास्टिक के उपयोग से बन रही हैं देश में सड़कें
प्लास्टिक से सड़कें बनाने का श्रेय जाता है प्रोफेसर राजगोपालन वासुदेवन को. 72 वर्षीय पद्मश्री विजेता वासुदेवन थियागराज कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग मदुरई के डीन हैं. इन्हें द प्लास्टिक मैन के नाम से भी जाना जाता है. इन्होंने एक बार टीवी पर एक कार्यक्रम में सुना कि प्लास्टिक पानी में घुलता नहीं है. इसके बाद ये चिंतित हो गए. उन्होंने केमिस्ट्री लैब में इसका हल खोजना शुरू किया.
वर्ष 2002 में प्रो. वासुदेवन ने अपने कॉलेज की सड़क को प्लास्टिक से बनाया. इसमें उन्होंने प्लास्टिक कैरीबैग, प्लास्टिक कप, खाने वाले चिप्स और बिस्किट के प्लास्टिक पैकेट का उपयोग किया. प्रो. वासुदेवन ने प्लास्टिक को 165 डिग्री सेल्सियस पर पिघला कर बिटुमैन और सड़क बनाने वाली सामग्री से मिला दिया. फिर इससे सड़क बनाई गई.
इससे सड़क इतनी मजबूत बन गई कि उसके टूटने या खराब होने की आशंका घटकर 1 फीसदी रह गई. अब देश के कई शहरों में ऐसी सड़कें बनी हुई हैं. प्लास्टिक से बनी सड़कें कोविलपट्टी, कोठामंगलम, मदुरई, सलेम, वेलिंग्टन, चेन्नई, पुड्डूचेरी, हिंदपुर, कोलकाता, शिमला, तिरुवनंतपुरम, वडाकारा, कालीकट, जमशेदपुर और कोच्चि में मौजूद हैं.
3. सिक्किम में सिंगल यूज प्लास्टिक पर 100 फीसदी प्रतिबंध
देश के उत्तर-पूर्व में स्थित सिक्किम में सिंगल यूज प्लास्टिक पर 100 फीसदी प्रतिबंध है. इस पर सफलता हासिल करने के बाद अब वहां प्लास्टिक की पेट बॉटल और फोम वाले फूड कंटेनर पर भी प्रतिबंध लग गया है. 1998 में शुरू हुई प्लास्टिक को बैन करने की मुहिम को पूरी सफलता मिली 2016 में. सबसे अच्छा उदाहरण पेश किया कंचनजंगा नेशनल पार्क में स्थित युकसोम गांव ने.
वर्ष 1997 तक नेशनल पार्क में भयानक प्लास्टिक कचरा जमा हो गया था. गांव के लोगों ने कंचनजंगा कंजरवेशन कमेटी बनाई. कमेटी अब हर साल 800 किलो कचरा जमा करती है. उसे रिसाइक्लिंग के लिए बाहर भेज देती है. अब सिक्किम में सिंगल यूज प्लास्टिक पूरी तरह से बैन है. यहां के दुकानदार आपको कागज या कपड़े के थैले में समान देंगे. आप प्लास्टिक का उपयोग करते दिखे तो भारी जुर्माना देना पड़ सकता है. सिक्किम सिर्फ प्लास्टिक पर प्रतिबंध के मामले में ही अव्वल नहीं है. बल्कि, सफाई के मामले में भी देश का सर्वोच्च राज्य है.
4. समुद्र से निकालते हैं, उसमें छूट गए मछली फंसाने वाले जाल
रॉबर्ट पानीपिल्ला एक गैर-सरकारी संस्था फ्रेंड्स ऑफ मरीन लाइफ चलाते हैं. रॉबर्ट कहते हैं कि 2000 में उन्होंने देखा कि समुद्र में कई बार मछुआरों के जाल छूट जाते हैं. साथ ही समुद्र में मौजूद प्लास्टिक से जीवों को खतरा था. इसलिए मैंने स्कूबा डाइविंग सीखी. फिर 6 अन्य मछुआरों को भी स्कूबा डाइविंग सिखाई. तब से लेकर आज तक मेरी संस्था ने समुद्र में 2000 वर्ग किमी तक के इलाके में सफाई का अभियान चला रखा है.
अब मेरी टीम में 50 लोग है. हम मन्नार की खाड़ी कन्याकुमारी से लेकर केरल के किलोन जिले तक समुद्र की सफाई करते हैं. उनमें से छूटे हुए जाल निकालते हैं और प्लास्टिक के कचरे भी. मछुआरों के जाल समुद्र में रीफ में फंस जाते हैं. इसमें फंस कर मछलियों की मौत हो जाती है. जीव-जंतु घायल हो जाते हैं. ये जाल 600 सालों तक नहीं खत्म होते. हर महीने तिरुवनंतपुरम में 2500 जाल समुद्र में फेंक दिए जाते हैं. हम जब भी समुद्र में गोता लगाते हैं हमें सबसे ज्यादा प्लास्टिक का कचरा ही मिलता है.
5. जब सीमेंट फैक्ट्री में कोयले की जगह पहुंची शैंपू, पाउडर और क्रीम की बोतलें
सन 2007 की बात है जब एक दिन जबलपुर में स्थित एसीसी सीमेंट फैक्ट्री के बाहर शैंपू, पाउडर और क्रीम की बोतलों से भरे हुए तीन ट्रक पहुंचे. सीमेंट प्लांट का हेड चकित हो गया कि ये सामान क्यों आया है. पहले उसे लगा कि शायद कर्मचारी कल्याण योजना के तहत आया हो. लेकिन जब प्लांट हेड ने बोतलों की जांच की तो पता चला कि सभी उत्पाद एक्सपायर हैं.
तब प्लांट हेड ने हेडक्वार्टर में फोन लगाया तो उन्हें पता चला कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कहने पर हिंदुस्तान यूनीलीवर ने ये बेकार उत्पाद सीमेंट फैक्ट्री में भिजवाए हैं. मकसद था कि फैक्ट्री में ईंधन के तौर पर कोयले के साथ इन उत्पादों के भी उपयोग किया जाए. क्योंकि इनसे भी तेज गर्मी निकलती है जो सीमेंट बनाने में मदद करेगी. इस प्रयोग के सफल होने के बाद हिंदुस्तान यूनीलीवर ने चार सालों में एसीसी सीमेंट को 13,700 टन बेकार उत्पाद बतौर ईंधन भेजे. अब यह तरीका कोयला आधारित ज्यादातर सीमेंट फैक्ट्रियों में उपयोग में लाया जाता है.
6. प्लास्टिक की ईंटें-टाइल्स बननी शुरू हो चुकी हैं देश में
बात 2017 की है. केंद्रीय विज्ञान मंत्री डॉ. हर्षवर्धन एक प्रदर्शनी में गए थे. वहां वे एक बाथरूम में गए. यह बाथरूम विभिन्न रंगों की टाइल्स और ईंटों से बना था. उन्होंने पूछा कि यह क्या है तब CSIR के वैज्ञानिकों ने बताया कि ये ईंटें और टाइल्स प्लास्टिक से बने हैं. इसे दिल्ली में CSIR की नेशनल फीजिक्स लेबोरेटरी के वैज्ञानिक डॉ. एसके धवन ने बनाया था. इन ईंटों और टाइल्स पर पानी नहीं जमता. न हीं ये टूटती हैं. इन्हें नष्ट होने में कम से कम 1000 साल लगेंगे.