इन कानूनों के तहत स्थापित होते हैं डिटेंशन सेंटर्स
सूत्रों ने बताया कि डिटेंशन सेंटर्स फॉरन ऐक्ट, 1946 एवं फॉरनर्स ऑर्डर, 1948 के तहत बनाए गए हैं जिन पर सुप्रीम कोर्ट भी संज्ञान ले चुका है। एक अधिकारी ने कहा कि अवैध रूप से भारत में रह रहे विदेशियों को तब तक डिटेंशन सेंटरों में रखा जाता है जब तक कि उनकी देश वापसी के लिए जरूरी यात्रा दस्तावेज तैयार नहीं हो जाते। उन्होंने बताया कि इन डिटेंशन सेंटरों का एनआरसी से कोई लेनदेन नहीं है।
गृह मंत्रालय ने 1998 में राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को डिटेंशन/होल्डिंग सेंटर्स बनाने के निर्देश दिए थे। मंत्रालय ने फॉरनर्स ऐक्ट, 1946 के तहत केंद्र सरकार को विदेशियों की गतिविधियों पर रोक लगाने और उन्हें विशेष क्षेत्र तक सीमित रखने के मिले अधिकार का इस्तेमाल करते हुए यह निर्देश जारी किया था। इसके अलावा, भारत सरकार को पासपोर्ट (एंट्री इन टु इंडिया) ऐक्ट, 1920 के तहत अधिकार मिला है कि वह ऐसे किसी विदेशी को भारत से बाहर कर सके जो वैध पासपोर्ट या दूसरे यात्रा दस्तावेजों के बिना यहां आया हो।
ये अधिकार राज्य सरकारों को संविधान के अनुच्छेद 258(1) के तहत जबकि केंद्रशासित प्रदेशों को आर्टिकल 239 के तहत प्राप्त होते हैं। इन अधिकारों का इस्तेमाल फॉरनर्स रीजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिस या FROs के जरिए किया जाता है जो जिला पुलिस अधीक्षक (एसपी) के अधीन होते हैं।
पढ़ें:
देश में कहां-कहां हैं डिटेंशन सेंटर्स
सूत्रों ने बताया कि असम सरकार पिछले कुछ दशकों से जेलों के कुछ हिस्सों को ही डिटेंशन सेंटर्स के रूप में इस्तेमाल कर रही है। असम के गोलपारा, कोकराझार, तेजपुर, जोरहट, डिब्रूगढ़ और सिल्चर जिलों में विदेशियों के लिए डिटेंसन सेंटर्स/होल्डिंग सेंटर्स/कैंप्स हैं। वहीं, केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली के सेवा सदन, लामपुर, (महिलाओं के लिए) महिला सदन और (बांग्लादेशियों के लिए) शजदाबाग में डिटेंशन सेंटर्स हैं। इस तरह, पंजाब के अमृतसर स्थित सेंट्रल जेल, राजस्थान के अलवर जेल के अहाते में डिटेंशन सेंटर्स हैं जबकि प. बंगाल में सुधार गृह हैं। वहीं, गुजरात के भुज और तमिलनाडु में भी डिटेंशन सेंटर्स हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने असम के मटिया में भी एक डिटेंशन सेंटर बनाने के प्रस्ताव को स्वीकृति दी है जिसमें तीन हजार लोगों को रखा जा सकता है।
डिटेंशन सेंटर पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने 28 फरवरी, 2012 के आदेश में कहा था कि सजा काट चुके विदेशियों को जेल से तुरंत रिहा किया जाना चाहिए और उन्हें डिपोर्ट करने तक उनकी गतिविधियों को सीमित रखते हुए उचित स्थान पर रखा जाना चाहिए जहां मूलभूत सुविधाएं जरूर हों। डिटेंशन सेंटर्स में रखे गए विदेशियों को कठोर कारावास की सजा नहीं दी जा सकती है।
Source: National