राजभवन पहुंचा लखनऊ यूनिवर्सिटी के कुलपति की नियुक्ति पर नियमों का बखेड़ा

दिनेश मिश्रा, वाराणसी
लखनऊ यूनिवर्सिटी (एलयू) में कुलपति की नियुक्ति में क्या यूजीसी के नियमों को अनदेखा किया गया है? यह सवाल अब बीएचयू परिसर से लेकर राजभवन तक पहुंच गया है। बीएचयू के ही शोध छात्र विनोद कुमार सिंह ने उत्‍तर प्रदेश के राज्यपाल को खत भेज एलयू में कुलपति के रूप में हाल ही में नियुक्ति किए गए बीएचयू के को लेकर नियमों को लेकर अनदेखी का आरोप लगाया है।

बीएचयू के शोध छात्र की ओर से राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को भेजे गए खत में लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति के पद पर प्रफेसर आलोक कुमार राय की नियुक्ति में अनियमितताओं की ओर आकृष्ट किया गया है। राजभवन को भेजे गए खत में कहा गया है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा किसी भी विश्वविद्यालय में कुलपति की नियुक्ति हेतु नियुक्त होने वाले व्यक्ति के लिए न्यूनतम दस वर्षों तक प्रोफेसर होने का अनुभव होने की अनिवार्य अर्हता निर्धारित की गई है और इसे देश के राजपत्र द्वारा अधिसूचित भी किया गया है। शिकायतकर्ता ने अपने शिकायतीपत्र में राजपत्र की प्रतिलिपि भी संलग्न की है।

प्रफेसरशिप का अनुभव मात्र साढ़े सात साल का
बीएचयू के शोध छात्र ने शिकायती पत्र में राज्यपाल के संज्ञान में लाया है कि डॉ. आलोक कुमार राय का बतौर प्रफेसर अनुभव मात्र साढ़े सात साल का है और वह कुलपति पद की नियुक्ति के लिए अनिवार्य अर्हता भी पूरी नहीं करते हैं। इनका अनुभव काशी हिंदू विश्वविद्यालय की आंतरिक वेबसाइट पर प्रबंध शास्त्र संस्थान की वरीयता सूची में प्रदर्शित और वर्णित है। इसके अनुसार, डॉ. आलोक कुमार राय 11/07/2012 को प्रोफेसर पद पर प्रोन्नत हुए हैं और इस तरह उनका प्रफेसरशिप का अनुभव मात्र साढ़े सात साल का ही है।


कड़ी कार्रवाई की मांग

शिकायतकर्ता ने अपनी शिकायत में प्रफेसर आलोक कुमार राय के अनुभव की प्रति भी संलग्‍‍‍न की है। शिकायतकर्ता ने कहा कि लखनऊ यूनिवर्सिटी के कुलपति के रूप में आलोक कुमार राय की नियुक्ति पूर्णतः विधि-विरुद्ध है और असंवैधानिक है। शिकायतकर्ता ने लिखा है कि ऐसा प्रतीत होता है कि उनकी नियुक्ति के लिए आपको तथ्यों से अवगत नहीं कराया गया है या फिर तथ्यों से छेड़छाड़ कर आपका अनुमोदन प्राप्त किया गया है। राज्यपाल से शिकायतकर्ता ने अनुरोध किया है कि आप लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति के तौर पर डॉ. आलोक कुमार राय की नियुक्ति को असंवैधानिक होने के कारण निरस्त करें और गलत तथ्यों के आधार पर अनुमोदन लिए जाने के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें, ताकि संविधान की रक्षा हो और विधि का सम्मान हो।

वीसी पद से हटाया जा चुका है एक बीएचयू प्रफेसर को
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के प्रफेसर आलोक कुमार राय की नियुक्ति अभी नियमों के बखेड़े में फंसी है, लेकिन इसके पहले एक प्रफेसर की कुलपति के पद पर हुई नियुक्ति इसके कारण निरस्त भी हो चुकी है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ही एक अन्य प्रोफेसर सदानंद शाही को कुछ साल पहले छत्तीसगढ़ विश्वविद्यालय के कुलपति के तौर पर नियुक्ति की गई थी। दस वर्षों की प्रफेसरशिप नहीं होने के कारण उनकी नियुक्ति निरस्त कर दी गई थी।

Source: International

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *