‘यहां सिर्फ चिंगारी लगती है, आग तो बाहर उठती है, अयोध्या में हर मौसम ऐसा ही माहौल रहता है, जैसा आप देख रहे हैं।’ यह कहना है 25 साल के विशाल गुप्ता की। विशाल एक मिठाई की दुकान पर बैठते हैं जो 80 साल पुरानी है और उनके पापा-बाबा के जमाने से चली आ रही है। इस दुकान ने 6 दिसंबर 1992 का दिन भी देखा है जिस दिन से अयोध्या की नई पहचान विवादित स्थल से हो गई।
इस मामले को लेकर का दौर चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की पीठ दोनों पक्षों की दलीलें सुन रहा है। कोर्ट में आखिरी सुनवाई 17 अक्टूबर को है। जैसे-जैसे सुप्रीम कोर्ट में आखिरी सुनवाई का दिन नजदीक आ रहा है अयोध्या में इस मुद्दे को लेकर सरगर्मी तेज है। लोगों को उम्मीद है कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई रिटायर होने से पहले इस विवाद पर फैसला जरूर सुनाएंगे।
एक ही गली में अजान भी राम कथा भी
हालांकि इन सबके बीच यहां के लोग यह भी कहते हैं कि अयोध्या की असली तस्वीर उस तस्वीर से अलग है जो नेताओं द्वारा बाहर दिखाने का प्रयास किया जाता है। यहां एक ही गली में मस्जिद की अजान सुनाई देती है तो दूसरी स्थित घर में राम कथा भी हो रही है। कहने को तो धारा 144 लगी है लेकिन यहां के लोगों को खुद इस बारे में बाहर के लोगों और रिश्तेदारों से जानकारी हो रही है।
हिंदू-मुसलमान में कोई भेदभाव नहीं है
टेढ़ी बाजार इलाके में स्थित एक मिठाई भंडार में बैठे विशाल कहते हैं, ‘श्रीरामजन्म भूमि अयोध्या का एक प्राण है। यहां माहौल हमेशा ऐसा ही रहता है एकदम नॉर्मल। किसी को कोई समस्या नहीं है। यहां तो लोग कहते हैं कि चिंगारी यहां लगती है, आग तो बाहर उठती है।’ दूसरे हिंदुओं की तरह विशाल को भी यहां भरोसा है कि फैसला उन्हीं के पक्ष में आएगा। वह कहते हैं, ‘रही बात फैसले की कि तो खुशियां आने में कुछ ही दिन बाकी है। एक या दो हफ्ते में फैसला हो जाएगा। यहां हिंदू या मुसलमान हो, आपस में कोई भेदभाव नहीं है।’
भगवान की तस्वीरें बनाकर बेचते हैं महबूब अली
विशाल कहते हैं कि उनके ग्रुप में 80 फीसदी मुस्लिम भी यही कहते हैं कि मंदिर बने क्योंकि इससे यहां रोजगार आएगा और विकास भी होगा। टेढ़ी बाजार से आगे अयोध्या कोतवाली के बगल में स्थित एक संकरी गली में धार्मिक फोटो हाउस है। यहां राम दरबार समेत सभी भगवान की तस्वीरें मिलती हैं। इस दुकान के मालिक हैं 39 साल के महबूब अली। महबूब पिछले 12 साल से यह दुकान चला रहे हैं।
‘हमको तो बाहर से पता चला कि यहां धारा 144 लगी है’
वह बताते हैं, ‘हमारी धार्मिक फोटो हाउस की दुकान है और थोड़ा चूड़ी-कंगन भी बेचते हैं।’ 1992 के वक्त को याद करते हुए वह बताते हैं, ‘तब हम 12-13 साल के थे। घर से निकलने नहीं दिया जा रहा था। मोहल्ले में जो फोर्स लगी रहती थी उन्हीं के साथ कंचा-गोली खेलते थे।’ मंदिर-मस्जिद मुद्दे पर वह कहते हैं, ‘चर्चा तो रोज रहती है लेकिन बाहर ज्यादा डर बनाया जाता है। हमसे बाहर के व्यापारी फोन करके पूछते हैं कि हम आएं कि या नहीं? हम उन्हें कहते हैं कि आप आराम से आइए और सामान बेचिए। यहां लोग मिल-जुलकर रहते हैं।’
वह आगे बताते हैं,’हमें तो पता भी नहीं था कि यहां 144 लगी है, हमारे ससुराल वालों ने फोन करके हमें बताया। कोर्ट जो करेगा अच्छा करेगा। इस फैसले को जल्दी से जल्दी निपटा दिया जाना चाहिए। इससे हमारी रोजी-रोटी पर फर्क पड़ता है।’
मोबाइल स्टोर में दो दोस्त-सरफराज और हर्ष
हनुमान गढ़ी के पास चाइनीज मोबाइल कंपनी एमआई का स्टोर है। इस स्टोर में दो साथी काम करते हैं। एक का नाम है- हर्ष श्रीवास्तव (24) और दूसरे का नाम सरफराज अली (22)। सरफराज का घर फैजाबाद में ही है तो हर्ष पिछले 6 साल से यहां रह रहे हैं। दोनों के बीच 4 साल से दोस्ती है। दोनों की पैदाइश 1992 के बाद जन्मीं पीढ़ी से हैं लेकिन इसे माहौल का असर समझ लीजिए या धर्म का असर, दोनों कागज में उकेरकर विवादित स्थल पर चर्चा करते हैं। हालांकि दोनों के बीच चर्चा बहुत हल्की अंदाज में होती है। सरफराज कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट जिस पक्ष पर भी फैसला सुनाएगा, उन्हें मंजूर होगा।
‘फैसला जो हो दोस्ती पर असर नहीं’
सरफराज कहते हैं, ‘हम दोनों पक्ष रखते हैं, निष्कर्ष कुछ नहीं निकलता है फिर फैसले का इंतजार करते हैं।’ हर्ष कहते हैं, ‘यह (सरफराज) मस्जिद चाहते हैं और हम राम मंदिर। हम दोनों 4 साल से दोस्त हैं।’ सरफराज की पीठ पर हाथ रखकर हर्ष आगे कहते हैं, ‘फैसले चाहे जो भी हमारी दोस्ती पर असर नहीं पड़ेगा। क्योंकि मंदिर बनना चाहिए, अगर मंदिर का फैसला आना तो मंदिर ही बनना चाहिए। हम कुछ नहीं कहेंगे। मुसलमान चाहते हैं कि अमन-शांति बने रहे। तो जब यह कहा जा रहा है तो कुछ नहीं होगा सब पहले जैसा बना रहेगा।’
‘सिर्फ सियासी रोटियां सेंकी जा रही हैं’
कारसेवकपुरम के आसपास ई-रिक्शा चलाने वाले मोहम्मद अनीस बताते हैं कि धर्म के नाम पर यहां जो राजनीति करेगा वह जीत जाएगा। वह आगे कहते हैं, ‘दोनों तरफ के पक्षकार सिर्फ सियासी रोटियां सेंक रहे हैं जबकि अयोध्या के मुसलमानों को मंदिर बनने में भी कोई हर्ज नहीं है।’ शरद पूर्णिमा के दिन सरयू तट पर श्रद्धालुओं की भीड़ देखने को मिली। शाम को आरती के वक्त यहां स्पीकर में तुलसीदास की चौपाई सुनाई जा रही है- ‘आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह। तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।’
‘मंदिर बने तो बाकी मुद्दों पर भी ध्यान जाए’
आरती में शामिल होने आए दिनेश पाठक (65) कहते हैं, ‘फैसला हमारे पक्ष में ही होगा और मंदिर जरूर बनेगा। हम पूरी तरफ से तैयारी है। अगर आप लोग आपस में सहमत है तो हमें कोई विरोध नहीं है। सब भाईचारे के साथ रहते है।’ उन्हीं के साथ खड़े विनय शंकर तिवारी (45) कहते हैं, ‘अयोध्या के दोनों पक्ष चाहते हैं कि फैसला हो जाए, कोई विवाद नहीं है आपस में।’ वह आगे कहते हैं, ‘मंदिर बन जाने से यहां बाकी समस्याओं पर भी ध्यान दिया जाएगा, एजुकेशन, स्वास्थ्य, सड़कें और बाकी। साथ ही जो स्मार्ट सिटी बनाने की बात की जा रही है, उस पर कुछ काम होगा।’
‘1992 से काफी कुछ बदला लेकिन मनमुटाव नहीं है’
हनुमान गढ़ी के पास खुरचन के पेड़े बेचने वाले पवन कुमार गुप्ता पिछले 50 साल से यहां रह रहे हैं। वह 6 दिसंबर 1992 के दिन अयोध्या में ही थे जब विवादित ढांचा गिराया जा रहा था। वह बताते हैं , ‘अयोध्या में अब काफी कुछ बदल गया है लेकिन आपसी सौहार्द अभी भी कायम है। यहां दोनों पक्ष के लोग आपस में बात करते हैं। इस मुद्दे पर भी बात करते हैं लेकिन विवाद नहीं किसी के बीच।’ पवन बता ही रहे होते हैं कि पीछे बाहर से आए कुछ लड़के जय श्री राम के नारे लगाते हुए जाते नजर आते हैं।
Source: UttarPradesh