संसद का अगला सत्र 18 नवंबर से 13 दिसंबर तक होने की संभावना जताई जा रही है। यह हटने, जम्मू-कश्मीर के दो टुकड़े होकर उनके केंद्रशासित प्रदेश बनने और में संभावित फैसले के बाद आहूत होने वाला पहला संसदीय सत्र होगा। तब तक महाराष्ट्र और हरियाणा में नई सरकार भी सत्ता संभाल लेगी। इस पृष्ठभूमि में संसद का काफी दिलचस्प होने की उम्मीद है।
थोड़ा पहले
होगा शीत सत्र
यह पिछले वर्ष के शीत सत्र के मुकाबले थोड़ा पहले होने जा रहा है। पिछली बार शीत सत्र 11 दिसंबर से 8 जनवरी तक चला था। 2017 में 15 दिसंबर से 5 जनवरी तक आयोजित शीत सत्र की सिर्फ 14 बैठकें हुई थीं क्योंकि गुजरात विधानसभा चुनाव के कारण सत्र की शुरुआत ही देर से हुई थी। संविधान में ऐसी किसी बाध्यता का जिक्र नहीं है कि वर्ष में संसद के कितने सत्र बुलाए जाएं और न ही यह निर्धारित किया गया है कि कोई सत्र कितने दिनों का होना चाहिए। हालांकि, संविधान यह स्पष्ट कहता है कि दो सत्रों के बीच छह महीने से ज्यादा का वक्त नहीं हो। परंपरा के मुताबिक अब तक वर्ष में संसद के तीन सत्र बुलाए जाते हैं- बजट सत्र, मॉनसून सत्र और शीत सत्र।
राजनीति या अर्थव्यवस्था?
जम्मू-कश्मीर को प्रभावी संविधान के अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधान खत्म किए जाने के बाद पहली बार आहूत हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद केस में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की 17 नवंबर को रिटायरमेंट तक फैसला दे दिया तो शीत सत्र बेहद दिलचस्प हो जाएगा। कुछ विधेयकों के अलावा दो महत्वपूर्ण अध्यादेशों को कानून का रूप दिया जाना है। इनमें पहला नए और घरेलू विनिर्माण कंपनियों के लिए कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती जबकि दूसरा ई-सिगरेट और उसी तरह के प्रॉडक्ट्स की बिक्री, विनिर्माण और भंडारण पर रोक से जुड़ा अध्यादेश है। 20 दिनों के शीत सत्र में आर्थिक सुस्ती पर भी गरामगरम बहस होने की उम्मीद है।
राज्यसभा में नए आंकड़े
मोदी सरकार के लिए शीत सत्र का संचालन बजट एवं मॉनसून सत्र के मुकाबले आसान होगा। एनडीए को लोकसभा में अपार बहुमत है तो वह विपक्षी सांसदों के पार्टी छोड़ने के कारण राज्यसभा में भी मजबूत हुआ है। संसद के इस ऊपरी सदन में पांच सीटें खाली हैं और एनडीए की संयुक्त शक्ति 106 सीटों की है। इसके अलावा, सत्ताधारी गठबंधन को दोस्ताना संबंध वाले कुछ क्षेत्रीय दलों के 29 सांसदों का भी समर्थन हासिल है। तमिलनाडु की एआईएडीएमके एनडीए की पार्टी तो नहीं है, लेकिन उसने ज्यादातर मुद्दों पर सरकार का साथ दिया है। उसके 11 राज्यसभा सदस्य हैं। वहीं, ओडिशा के बीजू जनता दल (बीजेडी) के सात, तेलंगाना की तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के छह और आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस के 2 राज्यसभा सांसद हैं जो एनडीए का समर्थन करते हैं। इनके अलावा तीन अन्य क्षेत्रीय दलों ने भी कई अहम मुद्दों पर राज्यसभा में मोदी सरकार का साथ दिया है।
Source: National